मंत्रिमंडल ने विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड को समाप्त करने को मंजूरी दी
नई दिल्ली
केंद्रीय कैबिनेट ने 25 साल पुराने विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) को खत्म करने के प्रस्ताव पर बुधवार को मुहर लगा दी। बोर्ड वैसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की पड़ताल कर रहा था जिसे सरकार की स्वीकृति की जरूरत होती थी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 1 फरवरी को अपने बजट भाषण में एफआईपीबी की समाप्ती की घोषणा की थी। यह वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के तहत विभिन्न मंत्रालयों के बीच काम करता था।
मीडिया को बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में एफआईपीबी को समाप्त करने का निर्णय लिया गया है। इसकी जगह अब एक नया तंत्र काम करेगा जिसके तहत संबंधित मंत्रालय कैबिनेट से स्वीकृत मानक संचालन प्रक्रिया के तहत निवेश प्रस्तावों को मंजूरी देंगे।
मीडिया को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि संवेदनशील क्षेत्रों में निवेश के प्रस्तावों को गृह मंत्रालय की मंजूरी लेनी होगी। उन्होंने कहा कि जो प्रस्ताव अब तक एफआईपीबी में लंबित रह गए, उन्हें नई व्यवस्था के तहत संबंधित मंत्रालयों के पास भेजा जाएगा। 1990 में आर्थिक उदारीकरण के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के अधीन एफआईपीबी का गठन हुआ था। अभी रक्षा एवं खुदरा व्यापार समेत सिर्फ 11 सेक्टरों में ही एफडीआई के प्रस्तावों को सरकार की मंजूरी की जरूरत पड़ती है।
जेटली ने कहा कि 91 से 95 प्रतिशत तक एफडीआई प्रपोजल ऑटोमैटिक रूट से आते हैं। नई व्यवस्था के तहत अब आर्थिक मामलों के सचिव हर तीसरे महीने जबकि वित्त मंत्री सालाना आधार पर लंबित प्रस्तावों की समीक्षा करेंगे। 5,000 करोड़ रुपये से ऊपर के एफडीआई प्रपोजल्स को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ही मंजूरी देगी। 2016-17 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 9 प्रतिशत बढ़कर 43.48 अरब डॉलर (करीब 2.81 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंच गया।