नई दिल्ली
बीते शुक्रवार को ISRO द्वारा निगरानी रखने की क्षमता वाले कार्टोसैट-2 सीरीज के ‘आई इन द स्काई’ सैटलाइट के सफलतापूर्वक लॉन्च से भारत की सैन्य ताकत में बड़ा इजाफा हुआ है। इसी के साथ सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल होने वाले भारत के सैटलाइट्स की संख्या बढ़कर अब 13 हो गई है। निगरानी और बॉर्डर के इलाकों की मैपिंग के लिए इस्तेमाल हो सकने वाले इन सैटलाइट्स का उपयोग मुख्य तौर पर दुश्मन पर नजर रखने के लिए किया जाएगा। चाहे जमीन हो या समुद्र दोनों जगहों पर ये सैटलाइट्स उतने ही कारगर हैं।
इसरो से जु़ड़े सूत्र ने बताया, ‘इन रिमोट सेंसिंग सैटलाइट्स में से ज्यादातर पृथ्वी की कक्षा के नजदीक रखे गए हैं। इन सैटलाइट्स को पृथ्वी की सतह से लगभग 2001,202 किलोमीटर ऊपर सन-सिंक्रनस पोलर ऑर्बिट में रखने का असर यह होता है कि पृथ्वी की स्कैनिंग बढ़िया तरीके से हो पाती है।
हाल ही में लॉन्च किया गया 712 किलोग्राम का कार्टोसैट-2 सीरीज का स्पेसक्राफ्ट दरअसल एक रिमोट-सेंसिंग सैटलाइट है जो किसी निर्धारित जगह की निश्चित तस्वीर खींचने में सक्षम है। इस सैटलाइट का रेजॉलूशन 0.6 मीटर है, जिसका मतलब यह है कि यह बारीक से बारीक चीज का पता लगा लेगा। इसरो से जुड़े सूत्र ने बताया, ‘सेना द्वारा निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली 13 सैटलाइट्स में कार्टोसैट-1 और 2 सीरीज और रिसैट-1 और रिसैट-2 शामिल हैं।’ नेवी भी जीसैट-7 का इस्तेमाल अपने वॉरशिप, सबमरीन, एयरक्राफ्ट और लैंड सिस्टम्स में रियल टाइम टेलिकम्यूनिकेशन के लिए करती है।
भारत के पास दुश्मन के सैटलाइट्स को निस्तेनाबूद करने वाले ऐंटी-सैटलाइट वेपन (ASAT) को लॉन्च करने की क्षमता है। दुनिया में सिर्फ अमेरिका, रूस और चीन के पास इस तरह के वेपंज होने की बात कही जाती है। हालांकि, अभी ISRO की मंशा इस तरह का कोई प्रॉजेक्ट शुरू करने की नहीं है। स्पेस ऐप्लिकेशन्स सेंटर के डायरेक्टर तपन मिश्रा ने कहा, ‘ISRO अंतरराष्ट्रीय मानकों को पालन करता है, जो किसी भी सदस्य को बाहरी अंतरिक्ष का सैन्यीकरण करने से रोकता है।’
डिफेंस टेक्नॉलजी एक्सपर्ट और DRDO के पूर्व डायरेक्टर (पब्लिक इंटरफेस) रवि गुप्ता ने कहा कि अग्नि-5 मिसाइल को सैटलाइट लॉन्च के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। उन्होंने बताया, ‘अग्नि-5 बलिस्टिक मिसाइल को विकसित किए जाने की प्रक्रिया के दौरान हासिल की गईं तकनीकी क्षमताओं का इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर ‘सैटलाइट लॉन्च ऑन डिमांड’ यानी मांग के अनुसार कभी भी सैटलाइट लॉन्च करने के लिए किया जा सकता है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘इसी तरह इन तकनीकों को बलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम के लिए इस्तेमाल होने वाली तकनीक के साथ मिलाकर ऐंटी-सैटलाइट वेपन सिस्टम विकसित करने के लिए किया जा सकता है।’