अहमदाबाद
पीएम नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में गुरुवार को संबोधित करते हुए गोरक्षा के नाम पर देश में हो रही हिंसा पर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने गोरक्षा के नाम पर लोगों की हत्याओं की आलोचना करते हुए कहा कि लोगों को गोसेवा विनोबा भावे और महात्मा गांधी से सीखनी चाहिए। मोदी ने इस दौरान गाय से जुड़ी अपने बचपन की एक कहानी भी सुनाई। उन्होंने बताया कि किस तरह एक दुर्घटना में जब एक गाय के पांव से कुचलकर बच्चे की मौत हो गई तो इस दुख में गाय ने भी पीड़ित परिवार के घर के सामने खाना-पीना छोड़कर अपने प्राण त्याग दिए। मोदी ने बताया कि एक गाय पश्चाताप में अपना शरीर छोड़ देती है और वहीं जब उसके नाम पर हिंसा होती है तो उन्हें बहुत तकलीफ होती है। पीएम के मुताबिक, कानून को उसका काम करने देना चाहिए और किसी को कानून हाथ में लेने का हक नहीं है।
मोदी ने कहानी की शुरुआत करते हुए कहा, ‘मुझे बचपन की एक घटना याद आती है। सत्य घटना है मेरे जीवन की और पहली बार आज शायद मैं इस बात को कह रहा हूं। एक समय हुआ करता था, जब मुझे लिखने की आदत हुआ करती थी, …तब मेरे मन में था कि मैं उस विषय पर लिखूंगा, लिख नहीं पाया। लेकिन आज मेरा मन करता है….क्योंकि यह ऐसी पवित्र जगह है, जिस पवित्र जगह से मन के भीतर की सच्चाई प्रकट होना बहुत स्वभाविक है। मैं बालक था। मेरे गांव में मेरा घर एक छोटे से संकरे गलियारे में है। वहां पर…बिलकुल सटे हुए घर हैं। हमारे घर के ही नजदीक सामने की तरफ एक परिवार था।…उस परिवार में संतान नहीं थी। उनकी शादी के कई वर्ष हो गए, लेकिन उनको संतान नहीं हुई। परिवार में भी एक तनाव रहता था कि घर में संतान नहीं है। बड़े धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति भी थे। बहुत बड़ी उम्र में उनके यहां संतान का एक जन्म हुआ। वह संतान बड़ी हो रही थी।’
मोदी ने आगे कहा, ‘छोटी सी संकरी गली थी। सुबह-सुबह गाय की भी एक आदत होती है। घरों के पास से गुजरती है तो घरवाले भी बाहर निकलकर रोटी खिलाते हैं। गाय हमारे मोहल्ले से आती थी, हर परिवार के लोग उसको निकलकर रोटी खिलाते थे। जिनके घर में संतान का जन्म हुआ, वे भी खिलाते थे। एक बार अचानक कोई हड़कंप मचा, बच्चों ने शायद कोई पटाखे फोड़ दिए…वह गाय हड़बड़ा गई और स्थिति ऐसी बनी कि उनका बच्चा जो मुश्किल से तीन-चार साल का हुआ था, वह भी दौड़ने लग गया। उसको समझ नहीं आया कि इधर दौड़ूं कि उधर दौड़ूं। जाने-अनजाने में वह गाय के पैर के नीचे आ गया। इतने सालों के बाद परिवार में एक बच्चा पैदा हुआ था और गाय के पैर के नीचे आने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।’
मोदी ने कहा, ‘आप कल्पना कर सकते हैं कि उस परिवार का माहौल क्या होगा? बड़े दुख के दिन थे, लेकिन दूसरे दिन सुबह से….यह दृश्य मैं भूल नहीं सकता हूं। दूसरे दिन सुबह ही वह गाय उनके घर के सामने आकर खड़ी हो गई थी। किसी भी घर के सामने जाकर रोटी नहीं खाई। वह परिवार भी उसे रोटी खिलाता था, लेकिन नहीं खाई।’
यह कहते समय भावुक हुए मोदी ने खुद को संभालते हुए कहा, ‘गाय के आंसू कभी नहीं रुके। एक दिन, दो दिन, पांच दिन, गाय न खाना खा रही, गाय न पानी पी रही थी। परिवार को इकलौते संतान की मृत्यु का शोक था। पूरे मोहल्ले में एक दुख का वातावरण था…लेकिन गाय पश्चाताप में डूबी हुई थी। कई दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया, कुछ नहीं पिया। उसके आंख के आंसू सूख गए। सारे मोहल्ले के लोग, उस परिवार के लोग भी लाख कोशिश करते रहे, लेकिन गाय ने अपना संकल्प नहीं छोड़ा। उस संतान, उस बालक की मृत्यु उसके पैर के नीचे हुई है, इस पीड़ा के मार्फत उस गाय ने अपना शरीर छोड़ दिया।