Home राज्य भगवान शिव ने चाहा तो फिर अमरनाथ जाऊंगा: ड्राइवर सलीम

भगवान शिव ने चाहा तो फिर अमरनाथ जाऊंगा: ड्राइवर सलीम

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अहमदाबाद

जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले के बाद अगर सबसे ज्यादा किसी शख्स की चर्चा है तो वह हैं बस के ड्राइवर सलीम मिर्जा जिन्होंने अपनी बहादुरी से 50 से ज्यादा लोगों की जान बचा ली। बस नंबर GJ 09 Z0976 के ड्राइवर सलीम ने हमारे सहयोगी अखबार ‘अहमदाबाद मिरर’ से बातचीत में कहा कि उन्हें भारतीय होने पर गर्व है और अगर भगवान शिव ने चाहा तो वह फिर अमरनाथ जाएंगे। सलीम ने आतंकी हमले की पूरी कहानी और अपना अनुभव विस्तार से बताया। जानिए, उस आतंकी हमले का खौफनाक मंजर ड्राइवर सलीम की जुबानी:

मैं बहुत हैरान हूं, सदमे में हूं और दुखी भी। पूरा दिन, मैं अलग-अलग राजनेताओं को अमरनाथ यात्रियो पर हुए आतंकी हमले के बारे में बात करते हुए सुनता रहा। मुझे राजनीति समझ नहीं आती। मैं दुखी हूं कि अपनी बस में सवार सभी यात्रियों की जान नहीं बचा सका। मुझे हमेशा इस बात का अफसोस रहेगा कि मैं सात जानें नहीं बचा पाया, पर इस बात का सुकून है कि 50 से ज्यादा लोगों को बचाकर मैं सुरक्षित स्थान पर ले जा सका। जिन लोगों को मामली चोटें आईं थी, वे बाद में मेरे पास आए और शुक्रिया कहा। उनमें से कई लोगों ने कहा, ‘सलीम भाई आपको सलाम। भाई जान आपने हमारी जिंदगी बचा ली।’ लेकिन मैं किसी को कुछ जवाब नहीं दे पाया, क्योंकि हर तरफ खून और मौत का मंजर देख मैं गहरे सदमे में था। मैं इतने शॉक में था कि हमला होने के लगभग डेढ़ घंटे बाद मुझे समझ आया कि आसपास हो क्या रहा है।

सूरत एयरपोर्ट पर मुझसे गुजरात के मुख्यमंत्री ने भी बात की। मुझे बताया गया है कि मेरा नाम बहादुरी पुरस्कार के लिए भेजा जाएगा। सच कहूं तो इसका पूरा श्रेय हर्ष भाई को जाता है, जो उस वक्त क्लीनर की सीट पर बैठे थे और उन्होंने ही मुझसे कहा था कि मैं बस को न रोकूं और तेजी से आगे बढ़ाता रहूं। उन्होंने ही मुझे नीचे की ओर झुक जाने की सलाह दी थी…जैसे ही गोलियां चलीं, मैं नीचे फर्श पर लेट गया। मुझे नहीं पता था कि बस कहां जा रही है, लेकिन मैंने स्टियरिंग से अपना हाथ नहीं हटाया। इस बीच हर्ष भाई को वे गोलियां लग गईं जो मुझे लग सकती थीं, अगर मैं नीचे की तरफ झुका न होता।

मैं बहुत डर गया था। कुछ पलों के लिए मुझे लगा कि किसी ने पत्थर मारा है जो कि शीशे पर लगा है, लेकिन जल्द मुझे अहसास हो गया कि ये गोलियां हैं। वे सभी दाईं तरफ से आ रहे थे। मुझे लगता है कि दो सेकंड के अंदर 40 से ज्यादा गोलियां बस के दाहिने हिस्से को भेद चुकी थीं।

वह दिन काफी थकाऊ था। बस में पंक्चर की वजह से हम दो घंटे बीस मिनट लेट थे। यह हादसा रात 8 बजे के बाद हुआ जब ज्यादातर यात्री सो रहे थे। बस के मालिक के बेटे हर्षभाई, क्लीनर की सीट पर बैठे थे। जैसे ही आतंकियों ने फायरिंग शुरू की, उन्होंने मुझे नीचे झुक जाने को कहा। उन्होंने गजब की फुर्ती दिखाई। मालिक ने, भगवान ने अचानक मुझे हिम्मत दी। मैं बस को आगे बढ़ाता चला गया। इस दौरान यात्रियों काफी घबरा गए और चिल्लाने लगे। लेकिन मैंने पूरा ध्यान बस को आगे बढ़ाने पर दिया।

लगभग दो किलोमीटर बाद, मुझे सेना के लोग दिखे। मैंने बस को रोका और उन्हें बताने के लिए भागा कि हमारे साथ क्या हुआ है। उन्होंने तुंरत हमारी मदद की। उन्होंने मुझे और यात्रियों को संभाला, हमें हिम्मत बंधाई। सात लोगों की मौत हुई थी और कई लोग घायल हुए थे। सेना के जवानों ने हमें सुरक्षित होने का अहसास कराया। बाद में कई लोग मेरे पास आए और कहा, ‘सलीम भाई सलाम।’ मैं आपको यह जरूर बताना चाहूंगा कि सेना के लोगों ने हमारा बहुत सहयोग किया। उन्होंने मेरा नाम और नंबर भी लिखा। उन्होंने मुझे भरोसा दिलाया कि वे जल्द ही बस पर हमला करने वाले आतंकियों को पकड़ लेंगे।

मैं भारतीय हूं और मुझे इस पर गर्व है। कई दूसरे भारतीयों की तरह, मैं भी राजनीति नहीं समझता। मैं अपने देश में शांति चाहता हूं ताकि मेरे जैसे लोग शांति से रोजी रोटी कमा सकें। वलसाड में हम किसी के साथ भेदभाव नहीं करते। यही वजह है कि मैं अमरनाथ गया था। इसके पहले भी मैं कम से कम चार बार अमरनाथ जा चुका हूं। मेरे मालिक ने मेरी जान बचाई। शायद अल्लाह और शिवजी ने मुझे रास्ता दिखाया। मैं कोई बहुत बुद्धिमान इंसान नहीं हूं। मुझे नहीं पता कि मेरे अंदर हिम्मत कहां से आई। मैं अमरनाथ में दर्शन के लिए भी गया था और प्रसाद भी लिया था जिसे मैं अपने परिवार के लिए अपने साथ ले जा रहा था।

मैं इतना पढ़ा-लिखा या प्रबुद्ध नहीं कि देश के हालात पर नेताओं और बुद्धिजीवियों की तरह बात करूं। मैं बस इतना कह सकता हूं कि मैं एक भारतीय हूं और मुझे इस पर गर्व है। जब मौत आती है या जब गोली लगती है तो वह किसी का धर्म नहीं देखती। जब भी कभी ऐसे हालात हों, आप धर्म के बारे में मत सोचिए। आप सिर्फ इतना सोचिए कि आपको अपनी जिंदगी बचानी है, दूसरों की जिंदगी बचानी है और दूसरों की मदद करनी है। मेरा परिवार खुश है कि मैं जिंदा घर लौट आया। सच कहूं तो मेरा धर्म और ईमान मेरा काम है।

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