अंटार्कटिका के महासागर में मौजूद चौथे सबसे बड़े हिमचट्टान लार्सेन सी एक बहुत बड़ा हिस्सा अलग हो गया है। इस हिमखंड का वजन खरबों टन बताया जा रहा है और यह संभवतः अब तक का सबसे बड़ा टुकड़ा है जो हिमचट्टान से अलग हुआ हो।
दिल्ली के आकार से 4 गुना बड़ा
इस हिमखंड का आकार 5 हजार 80 वर्ग किलोमीटर है। जो भारत की राजधानी दिल्ली के आकार से 4 गुना बड़ा है। गोवा के आकार से डेढ़ गुना बड़ा और अमेरिका के न्यू यॉर्क शहर से 7 गुना बड़ा है।
क्या होगा असर?
वैज्ञानिकों की मानें तो इस हिमखंड के अलग हो जाने से वैश्विक समुद्री स्तर में 10 सेंटीमीटर की वृद्धि हो जाएगी। इस महाद्वीप के पास से होकर गुजरने वाले जहाजों के लिए भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के मुताबिक यह हिमखंड 10 और 12 जुलाई के बीच टूटकर अलग हुआ है। इस हिमखंड का नाम A68 रखा जा सकता है।
लार्सेन ए और बी पहले ही ढह चुके हैं
वैज्ञानिकों के मुताबिक समुद्र स्तर पर इस हिमखंड के अलग होने से तत्काल असर नहीं आएगा लेकिन यह लार्सेन सी हिमचट्टान के फैलाव को 12 प्रतिशत तक कम कर देगा। लार्सेन ए और लार्सेन बी हिमचट्टान साल 1995 और 2002 में ही ढहकर खत्म हो चुके हैं।
क्या है वजह?
वैज्ञानिकों ने इस हिमखंड के अलग होने के पीछे कार्बन उत्सर्जन को सबसे बड़ी वजह बताया है। उनके मुताबिक कार्बन उत्सर्जन से वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी हो रही है जिससे ग्लेशियर जल्दी पिघलते जा रहे हैं।
भारत पर क्या होगा असर?
समुद्री स्तर में बढ़ोतरी होने से अंडमान और निकोबार के कई टापू और बंगाल की खाड़ी में सुंदरबन के हिस्से डूब सकते हैं। हालांकि, अरब सागर की तरफ इसका असर कम होगा लेकिन यह लंबे समय में दिखेगा। भारत की 7 हजार 500 किलोमीट लंबी तटीय रेखा को इससे खतरा है।
सालों से पश्चिमी अंटार्कटिक हिम चट्टान में बढ़ती दरार को देख रहे शोधकर्ताओं ने कहा कि ये घटना 10 जुलाई से लेकर 12 जुलाई के बीच किसी समय हुई है. इस हिमशैल को ए68 नाम दिए जाने की संभावना है और ये एक खरब टन से ज्यादा वजनी है. इसका विस्तार सबसे बड़ी लहरों में से एक लेक इरी के विस्तार से दो गुना है.