सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक महिला को 26 हफ्ते के भ्रूण को गिराने की इजाजत दे दी। कोर्ट ने यह फैसला उस मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर दिया जिसमें कहा गया है कि बच्चे का कपाल नहीं है और इससे 26 साल की गर्भवती महिला को मानसिक आघात पहुंच सकता है।
मुंबई के सर जेजे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने कोर्ट के आदेश पर महिला का परीक्षण करने के बाद कहा था कि वह गर्भपात कराना चाहती है क्योंकि भ्रूण के बचने के आसार कम हैं और इससे उसे भारी मानसिक तकलीफ हो रही है। जस्टिस एस. ए. बोबडे और एल नागेश्वर राव की बेंच ने कहा, ‘हमें लगता है कि न्याय की दृष्टि से याचिकाकर्ता को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट, 1971 के तहत गर्भ गिराने की अनुमति दी जा सकती है।’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला के भ्रूण को जारी रखने से महिला की जान को खतरा है और ऐसे में महिला को गर्भपात की इजाजत दी जाती है। कोर्ट ने महिला को उसी अस्पताल में गर्भपात कराने का निर्देश दिया है जहां उसका मेडिकल चेक-अप किया गया था।
कानूनी जानकार बताते हैं कि गर्भपात तभी कराया जा सकता है जब गर्भ के कारण महिला की जिंदगी खतरे में हो। 1971 में अलग कानून बनाया गया और इसका नाम रखा गया मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ऐक्ट, जिसके तहत तमाम प्रावधान किए गए हैं। कानून के तहत 20 हफ्ते तक की भ्रूण को महिला के वेलफेयर को देखते हुए डॉक्टर की सलाह से गर्भपात किया जा सकता है। अगर महिला की जान खतरे में हो तो उसके बाद भी कोर्ट की इजाजत से प्रेग्नेंसी टर्मिनेट की जा सकती है।