अकादमिक स्तर पर कभी एमबीए की कभी मांग थी। इसे अच्छी नौकरी और बिजनस के लिए जरूरी माना जाता था पर अब हालात बदल रहे हैं। एमबीए करने के बाद भी नौकरी मिलना अब पहले जैसा आसान नहीं रहा। पिछले कुछ साल काफी मुश्किल भरे रहे हैं। देशभर से इकट्ठे किए गए आंकड़े दिखाते हैं कि इस कोर्स से अब पहले जैसी कमाई नहीं रही। हर दो में से करीब एक एमबीए ग्रैजुएट को नौकरी नहीं मिल रही है और इस क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।
साल 2016 में 75 हजार 658 छात्रों को कैंपस से नौकरी मिली। इस बारे में हालांकि कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है कि लगभग इतने ही उन अन्य छात्रों का क्या हुआ जिन्होंने देशभर में फैले करीब 3080 कॉलेज में दाखिला लिया था।
ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन के अध्यक्ष अनिल सहस्त्रबुद्धि ने कहा, ‘कुछ छात्र जिन्हें प्लेसमेंट नहीं मिलता वे छोटी-मोटी नौकरी करने लग जाते हैं। कुछ को ग्रैजुएशन के एक या दो साल बाद किसी कंपनी में नौकरी मिल जाती है। हमें उम्मीद है कि इंटर्नशिप जरूरी करने के बाद हालात में सुधार होंगे।
वहीं दूसरी ओर कंपनियों का कहना है कि IIM के छात्रों का 100 फीसदी प्लेसमेंट होता है लेकिन टियर-बी के स्कूलों से ग्रैजुएशन करने वाले छात्र उतने कामयाब नहीं हो पाते। कई छात्र जो बड़े स्कूलों में दाखिला नहीं ले पाते वह अन्य कॉलेज में भी नहीं जाते। इसके चलते करीब 233 बी-स्कूल बंद भी हुए हैं।
पिछले साल असोचैम की एक स्टडी के मुताबिक टॉप 20 कॉलेजों को छोड़ दें तो भारत के बिजनस स्कूलों से एमबीए करने वाले सिर्फ 7 फीसदी छात्रों को ही कोर्स करते नौकरी मिलती है। स्टडी में कहा गया था, ‘ खराब क्वॉलिटी कंट्रोल और संसाधन, कैंपस प्लेसमेंट से कम तनख्वाह और पढ़ाने वालों के खराब स्तर के चलते ही भारत में बिजनस स्कूलों का बुरा हाल हो रहा है। कई बिजनस स्कूलों में फैकेलटी को रि-ट्रेन नहीं किया जाता इसके चलते वे बेकार का कोर्स पढ़ाते रहते हैं।’
इस बात में कोई हैरानी नहीं है कि AICTE ने एमबीए के पाठ्यक्रम को हर साल रिविजन करने, तीन साल की इंटर्नशइप, तकनीकी और अन्य हुनर, स्टार्टअप के प्रोत्साहन, परीक्षा के तरीके में बदलाव और टीचर्स की नियमित ट्रेनिंग की सिफारिश की है।