इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पानी पर टैक्स लगाने के राज्य सरकार के अधिकार पर उठे सवाल पर प्रदेश के महाधिवक्ता से सरकार का पक्ष रखने को कहा है। कोर्ट ने पूछा है कि क्या सरकार पानी पर टैक्स लगा सकती है और क्या वॉटर ऐंड सीवेज ऐक्ट की धारा 52 असंवैधानिक है? कोर्ट ने पूछा है कि संविधान में जीवन के लिए पानी को जरूरी मानते हुए मूल अधिकारों में शामिल किया गया है। अनुच्छेद 205 में सरकार को कानून के बिना टैक्स लगाने से रोका गया है और अनुच्छेद 246 में सरकार को राज्य सूची व समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार है। वॉटर टैक्स राज्य व समवर्ती सूची में शामिल नहीं है। ऐसे में क्या राज्य सरकार वॉटर टैक्स वसूली का कानून बना सकती है। इस मामले को चीफ जस्टिस के पास भेजा गया है। अब इसकी सुनवाई चीफ जस्टिस की बेंच करेगी।
कोर्ट के सामने दो मुद्दों पर बहस होगी। क्या राज्य सरकार वॉटर टैक्स ले सकती है और यूपी वॉटर ऐंड सीवेज ऐक्ट की धारा 52 संवैधानिक है या असंवैधनिक। यह टिप्पणी जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस यू. सी. त्रिपाठी की बेंच ने पतंजलि नर्सरी एवं ऋषिकुल स्कूल व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते की है। नगर निगम के जलकल विभाग ने स्कूल के खिलाफ 4 लाख 86 हजार 306 रूपये के वॉटर टैक्स की वसूली का नोटिस दिया है, जिसे स्कूल ने चुनौती दी है। याची का कहना है कि सरकार को कानून बनाकर वॉटर टैक्स लगाने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि राज्य के वॉटर टैक्स वसूली कानून बनाने की अधिकारिता का मुद्दा जनहित से जुड़ा है, जिसका जवाब आना चाहिए। कोर्ट ने जल निगम से इस संबंध में जानकारी मांगी है। कई बार समय दिए जाने के बावजूद जानकारी न आने पर कोर्ट ने प्रदेश सरकार से हलफनामा मांगा। 2 जुलाई 2017 को सरकार की तरफ से कहा गया कि इस मामले पर महाधिवक्ता पक्ष रखेंगे। हालांकि, इसके बाद प्रदेश सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह नहीं मालूम कि महाधिवक्ता को यह बताया गया है या नहीं, लेकिन वह कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने नहीं आए। कोर्ट ने कहा कि कानून की वैधता के मुद्दे पर फैसले के लिए इस मामले को चीफ जस्टिस के समक्ष पेश किया जाए।