ज्वालामुखी के सक्रिय होने पर कुदरत के कहर से दुनिया को बचाने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक प्लान तैयार किया है। अमेरिका के येलोस्टोन पार्क में एक ऐसा ज्वालामुखी है जो पूरी दुनिया को तबाह करने की क्षमता रखता है। लेकिन अब वैज्ञानिक ऐसी रणनीति पर काम कर रहे हैं ताकि इस ‘सुपरवॉल्केनो’ को फटने से रोका जा सके।
नासा के रिसर्चर्स का मानना है कि इस ज्वालामुखी के बेस में खुदाई से एक समाधान निकल सकता है। उन्हें लगता है कि खुदाई के बाद हाई प्रेशर वाले वॉटर जेट्स की मदद से ज्वालामुखी को ठंडा करने के लिए पानी डाला जा सकता है और उसे फटने से रोका जा सकता है।
नासा के जेट प्रपलज़न लैबरेटरी (JPL) के ब्रायन विलकॉक्स ने बताया कि वॉल्केनो में खुदाई करने के अपने बहुत से खतरे हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर आप मैगमा चैंबर के ऊपर खुदाई करते हैं और उसे वहां से ठंडा करने की कोशिश करते हैं तो यह काफी जोखिम भरा काम हो सकता है। इससे मैग्मा चैंबर के ऊपर का हिस्सा और नाजुक हो सकता है और यह टूट भी सकता है। अगर ऐसा होता है तो ऐसी जहरीली गैस बाहर निकल सकती हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक होंगी।’
विलकॉक्स ने सुपरवॉल्केनो के खतरे को क्षुद्रग्रह या धूमकेतु के खतरे से भी बड़ा बताया। अगर यह सुपरवॉल्केनो में विस्फोट हो जाता है तो इससे धरती पर लंबे समय तक के लिए असर पड़ेगा। ऐसा माना जा रहा है कि इससे दुनियभार में भूखमरी जैसी हालत पैदा हो जाएगी और वातावरण में बड़ी मात्रा में सल्फर ऑक्साइड फैल जाएगा।
धरती पर औसतन 1 लाख साल बाद ज्वालामुखी में ऐसा भयानक विस्फोट होता है। सुपवॉल्केनो में सबसे हाल में हुआ धमाका 27 हजार साल पहले न्यूजीलैंड के नॉर्थ आइलैंड में हुआ था।यूएस जियलॉजिकल सर्वे की वेबसाइट ने बताया कि येलोस्टोन एक अनुमान के मुताबिक हर 6 लाख साल में एक बार फटता है। आखिरी बार यह लगभग 6 लाख साल पहले ही फटा था। अब नासा ने येलोस्टोन के 10 किलोमीटर इलाके में खुदाई की योजना बनाई है।
सालों पहले ही वैज्ञानिकों ने दी थी चेतावनी
बता दें कि अमेरिकी वैज्ञानिकों ने साल 2014 में ही इस ज्वालामुखी का पता लगाया था। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट में माना है कि येलोस्टोन नैशनल पार्क के नीचे सुपर ज्वालामुखी पहले के अनुमान की तुलना में काफी बड़ा है। अध्ययन के अनुसार, मैग्मा चैंबर पिछले अनुमानों की तुलना में 2.5 गुना बड़ा निकला है और गली हुई धातु से बनी चट्टानें 200-600 क्यूबिक किलोमीटर तक फैली हैं। इतना ही नहीं, इसमें कैवर्न (गुफा) 90 किलोमीटर तक फैल चुकी है। यानी यह अपना विस्तार करता ही जा रहा है।