गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में 10 अगस्त की रात को ऑक्सिजन की सप्लाई में बाधा से बच्चों की मौत नहीं हुई, क्योंकि वैकल्पिक उपाय मौजूद थे। हालांकि, डॉक्टर और ऑक्सिजन सप्लायर, ऑक्सिजन खत्म होने के लिए दोषी हैं। उन्हें पता था कि इसकी वजह से मौतें हो सकती हैं। गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों की मौत पर यूपी सरकार की जांच रिपोर्ट का यही सार है।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने 4 डॉक्टरों और ऑक्सिजन डीलर पुष्पा सेल्स के दो अधिकारियों पर आईपीसी की धारा 308 के तहत कार्रवाई की है। यह धारा जानबूझकर की गई लापरवाही के कारण हुई मौत से जुड़ी है। पुलिस ने धारा 304 के तहत कार्रवाई नहीं की है, जिससे हत्या का मामला बनता है। 308 में 7 साल तक की सजा का प्रावधान है। सबसे अहम बात यह है कि यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार के उसी दावे की तरह है, जिसके तहत 10 अगस्त की रात को दो घंटे तक ऑक्सिजन की सप्लाई बाधित रहने से मौत नहीं होने की बात कही जा रही है।
एफआईआर में भ्रष्ट गतिविधियों की तस्वीर पेश करते हुए कहा गया है कि बीआरडी के पूर्व प्रिंसिपल राजीव मिश्रा और उनकी पत्नी पुष्पा मिश्रा की ऑक्सिजन सप्लाई में कथित तौर पर पुष्पा सेल्स से डील थी। इसके मुताबिक, प्रिंसिपल ने पर्याप्त फंड होने के बावजूद 2016-17 में ऑक्सिजन सप्लाई से जुड़ी बकाया रकम को मंजूरी नहीं दी और वित्त वर्ष के आखिर में 2.5 करोड़ के इस बजट को लैप्स हो जाने दिया। एफआईआर में कहा गया है कि बीआरडी को 2017-18 में 4.54 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया, जिनमें से पुष्पा सेल्स से संबंधित 64 लाख रुपये की रकम का अप्रैल में तत्काल भुगतान किया जा सकता था, लेकिन मिश्रा ने ऐसा नहीं किया। इन गतिविधियों के कारण पुष्पा सेल्स ने 10 अगस्त को ऑक्सिजन की सप्लाई रोक दी, जबकि दोनों डॉक्टरों और कंपनी को यह पता था कि ऐसी स्थिति में अस्पताल में मौतें हो सकती हैं।
एफआईआर में डॉक्टर दंपती, बच्चा वॉर्ड के प्रभारी डॉक्टर कफील अहमद और पुष्पा सेल्स के दो अधिकारियों को नामजद किया गया है। उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 409 (भरोसा तोड़ना), 120बी (आपराधिक साजिश), 420 (ठगी) और भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 8 के तहत भी मामला दर्ज किया गया है। इस घटना में राज्य के चीफ सेक्रटरी की अगुआई में हुई जांच के बाद एफआईआर दायर की गई है। इससे पहले दिल्ली के डॉक्टरों की एक टीम ने भी यही बात कही थी।