प्रदेश के 10 टाइगर रिजर्व व नेशनल पार्क और 25 अभयारण्यों में वर्ष 2014 की तुलना में 40 युवा बाघ बढ़ गए हैं। दिसंबर 2017 तक दो साल की उम्र पूरी कर रहे शावकों को जोड़ें तो बाघों की संख्या 75 से ऊपर जाती है।इन आंकड़ों से उत्साहित वन अफसर 2018 में प्रदेश में सवा चार सौ से ज्यादा बाघों की मौजूदगी की उम्मीद लगाए हैं। ऐसा हुआ तो प्रदेश फिर से टाइगर स्टेट का तमगा पा लेगा। वर्ष 2014 की गणना में प्रदेश में बाघों की संख्या 308 थी। देश में सबसे ज्यादा 406 बाघ कर्नाटक में हैं।
स्टेट फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एसएफआरआई) जबलपुर ने जनवरी 2017 में सभी टाइगर रिजर्व, नेशनल पार्क और अभयारण्यों में बाघों की गिनती कराई है। वन विभाग को दिए आंकड़ों के मुताबिक जिस इलाके में वर्ष 2014 में वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) ने 222 युवा बाघ गिने थे, उतने ही इलाके में इस साल 249 बाघ मिले हैं। सूत्र तो यह आंकडा 262 तक बताते हैं। जिन फोटो या अन्य साक्ष्यों का ठीक से मिलान नहीं हुआ, संस्था ने उन्हें गिनती में नहीं रखा है। इस कारण रिकॉर्ड में संख्या 249 दर्ज हुई है।
उल्लेखनीय है कि 2014 में पगमार्क और ट्रैप कैमरा पद्धति से गिनती होने के कारण प्रदेश के संरक्षित और गैर संरक्षित वन क्षेत्रों में 286 बाघ गिने गए थे। फोटो के मिलान और अन्य दस्तावेजों के आधार पर 308 बाघों की पुष्टि हुई थी। जबकि कर्नाटक में 260 बाघ गिने गए थे और वैज्ञानिक तरीके से तैयार दस्तावेजों को मानते हुए 406 बाघों की घोषणा की गई थी।
बारीकी से होगी गिनती
वन अफसर बाघों की संख्या बढ़ने को लेकर इसलिए भी उत्साहित हैं, क्योंकि इस बार प्रदेश में बाघों की गिनती करने वाले कर्मचारियों को वैज्ञानिक तरीके से प्रशिक्षित कर दिया है। उन्हें गणना की बारीकी समझा दी गई है। अफसरों का मानना है कि पिछली बार (2014 में) इसी वजह से बाघों की सही गिनती नहीं हो पाई और आंकड़ा कम आने से कर्नाटक पहले नंबर पर आ गया।
जबकि बाघों के संरक्षण का काम मध्य प्रदेश में भी हुआ हैं। ज्ञात हो कि विभाग ने अगले साल होने वाली गणना के लिए मैदानी अमले को प्रशिक्षित कर दिया है। उन्हें बाघ की उपस्थिति के साक्ष्य पहचानने की कला सिखाई गई है।