बिहार में कांग्रेस पार्टी के 14 विधायकों ने अलग अनौपचारिक समूह बना लिया है और वो सत्ताधारी जेडी(यू) में शामिल होने की योजना बना रहे हैं। इन्हें बस इंतजार है पार्टी के और चार विधायकों के अपने गुट में आने का ताकि अपनी विधायकी कायम रखने के लिए जरूरी दो-तिहाई आंकड़े का इंतजाम हो जाए। राज्य में कुल 27 कांग्रेस विधायक हैं। ऐसे में पार्टी से अलग होकर भी विधायकी बची रहे, इसके लिए कम-से-कम दो तिहाई यानी 18 विधायकों का एकसाथ टूटना जरूरी है।
पार्टी विधायकों के छिटकने की आशंका के मद्देनजर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने बिहार कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चौधरी और कांग्रेस विधायक दल के नेता सदानंद सिंह को गुरुवार को दिल्ली तलब किया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बिहार कांग्रेस के अंदरखाने पक रही खिचड़ी से अनजान रहने को लेकर दोनों नेताओं पर नाराजगी जाहिर करते हुए हर हाल में यह टूट रोकने को कहा।
बिहार में कांग्रेस के 27 विधायकों (एमएलए) के अलावा छह विधान पार्षद (एमएलसी) भी हैं। इनमें चार, दो एमएलसी अशोक चौधरी एवं मदन मोहन झा तथा दो एमएलए अब्दुल जलील मस्तान एवं अवधेश कुमार, महागठबंधन की सरकार में मंत्री थे। कुछ और वरिष्ठ विधायकों को राज्य के विभिन्न बोर्डों और निगमों में जगह मिलने की आस थी, लेकिन नीतीश कुमार अचानक आरजेडी और कांग्रेस से नाता तोड़कर दोबारा बीजेपी के साथ हो लिए।
दरअसल, मंत्रालय या कोई मलाईदार पद मिलने की लालच के अलावा इन कांग्रेसी विधायकों पर अगड़ी जातियों के वोटरों का भी दबाव है जो महागठबंधन की जीत से लालू प्रसाद यादव को लंबे समय बाद मिली राजनीतिक ताकत के कारण यादवों का दबदबा बढ़ने से काफी बेचैन थे।
बिहार की सियासत पर नजर रखनेवालों का कहना है कि महागठबंधन के वक्त से ही निराशा का माहौल तैयार होने लगा था, लेकिन नीतीश कुमार की ‘उदार’ छवि की वजह से लोगों ने धैर्य का रास्ता अख्तियार कर रखा था। अब जब नीतीश ने रिश्ता तोड़ लिया तो कांग्रेस विधायकों की असमंजस खत्म हो गई और उनकी निराशा अब खुलकर सामने आने लगी है। हालांकि जेडी(यू)-बीजेपी गठबंधन को बहुमत का समर्थन हासिल है, लेकिन सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा है कि कांग्रेस में फूट पड़ने से नीतीश कुमार को विरोधियों से निपटने में ज्यादा आसानी होगी।
शुक्रवार को कांग्रेस ने नीतीश पर पार्टी तोड़ने का आरोप लगाया, लेकिन लगे हाथ यह भी कह डाला कि उसे टूट का कोई खतरा नहीं है। कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने संवाददाताओं से कहा, ‘कोई खतरा नहीं है। हां, कोशिशें जरूर हुईं, जिनसे बीजेपी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सिद्धांतहीन राजनीति का पर्दाफाश हुआ है। वो नाकामयाब रहे हैं और कांग्रेस अपनी राज्य इकाई या विधायक दल को कमजोर करने की हर कोशिश की कड़ी मुखालफत करती रहेगी।’
हालांकि कांग्रेस अपने आत्मविश्वास का प्रदर्शन कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट है। पार्टी में टूट की आशंका को लेकर उसकी चिंता 11 अगस्त को ही सामने आ गई जब ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी विधायकों की नाराजगी दूर करने के लिए पटना पहुंच गए। सिंधिया सदानंद सिंह के घर गए ताकि नाराज विधायकों के साथ-साथ खुद सदानंद सिंह का भी मिजाज भांपा जा सके। एक दर्जन से ज्यादा विधायक आगे की रणनीति पर चर्चा करने के लिए नीतीश कुमार या जेडी(यू) के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं।