नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम्यूनिकेशन स्ट्रैटिजी में शब्दों के चुनाव का खास मतलब होता है। सोमवार को गांधीनगर के भाट गाम में वह हिंदी बोलते-बोलते मातृभाषा गुजराती में शिफ्ट हो गए थे। इसके अलावा उन्होंने जब जीएसटी का जिक्र किया तो उसके साथ कांग्रेस का नाम भी जोड़ दिया। यह मोदी का चिर परिचित अंदाज नहीं था। ऐसे में सवाल यह है कि क्या उन्होंने ऐसा किसी बदली हुई रणनीति के तहत किया?
मोदी भाषण चाहे जहां भी दें, उन्हें यह अच्छे से पता होता है कि उन्हें संदेश कहां पहुंचाना है और उसी हिसाब से वह अपनी भाषा का चयन करते हैं। 20 दिसंबर 2012 को मोदी ने तीसरी बार राज्य में बीजेपी को जीत दिलाई थी। उस शाम वह अहमदाबाद में स्टेट पार्टी हेडक्वॉर्टर के सामने बने मंच पर पहुंचे और समर्थकों को हिंदी में संबोधित किया। उस समय वह उन लोगों के लिए भाषण नहीं दे रहे थे, जो उनके सामने खड़े थे, बल्कि वह गुजरात से बाहर की जनता तक पहुंचना चाहते थे। यही वजह थी कि उन्होंने वह जुबान चुनी, जिसे देश के दूसरे हिस्सों के लोग समझते हैं। इस भाषण के साथ उन्होंने यह सिग्नल दिया था कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मोदी अब मैदान में उतर चुका है।
हालांकि, सोमवार को अपने भाषण में मोदी हिंदी से गुजराती में स्विच कर गए। अपने कोर वोटरों से सीधे जुड़ने के लिए उन्होंने ऐसा किया। दिलचस्प बात यह है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद से लेकर हाल के हफ्तों तक मोदी ने सारे भाषण हिंदी में दिए थे। यहां तक कि गुजरात में भी उन्होंने सारे भाषण हिंदी में दिए थे। इसकी वजह यह है कि वह देशभर के वोटरों को लक्ष्य करके अपनी बात रख रहे थे। मोदी ने पहले के भाषण जहां सरकारी आयोजनों में दिए थे, वहीं सोमवार का भाषण उन्होंने एक पार्टी मीटिंग में दिया। यहां मोदी ने जीएसटी की बात करते वक्त गुजराती भाषा को चुना, जो कुछ समय से उनकी सरकार को परेशान कर रहा है। मोदी ने इस मामले में जो तर्क दिया, वह भी उनका खास स्टाइल नहीं है।
मोदी ने कहा, ‘जीएसटी लागू करने का फैसला अकेले प्रधानमंत्री का नहीं था।’ उन्होंने कहा कि इसके बारे में 30 पार्टियों से राय ली गई, जिनमें से उन्होंने सिर्फ कांग्रेस का जिक्र किया। इससे पहले मोदी यूपीए सरकार की कई योजनाओं को रीपैकेज करके उनका श्रेय ले चुके हैं। हाल में मोदी सरकार ने जिस सौभाग्य स्कीम की घोषणा की थी, वह भी यूपीए की ही योजना का रीपैकेज्ड वर्जन है। मोदी ने जीएसटी के लिए अपने साथ दूसरों का नाम इसलिए जोड़ा क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग इससे खुश नहीं हैं। यह उनका स्टाइल नहीं है।
सोमवार की मीटिंग पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए थी, लेकिन इसकी शुरुआत में मोदी ने गुजरात बीजेपी के संकट से बाहर आने की घटना का जिक्र क्यों किया? क्या बीजेपी को आगामी चुनाव हारने का डर है? नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। लेकिन गुजरात में जीत कैसी होगी, इस पर बहुत कुछ दांव पर लगा है। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने सोमवार को फिर कहा कि पार्टी इन चुनावों में 150 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। दरअसल, सीएम के तौर पर मोदी ने जो हासिल किया था, पीएम के तौर पर वह अपने राज्य में उससे अधिक सीटें हासिल करना चाहते हैं। वह चुनाव में खुद को ही चुनौती दे रहे हैं।
2012 गुजरात चुनावों के उलट मोदी अबकी बार कांग्रेस की काफी आलोचना कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि बीजेपी कुछ दबाव में है। 2014 से मोदी एकछत्र लीडर रहे हैं और इस छवि को बनाए रखने के लिए उन्हें गुजरात विधानसभा चुनाव में अच्छी जीत हासिल करनी होगी।