नई दिल्ली
डोकलाम के मुद्दे पर भारत और चीन के बीच करीब ढाई महीने तक चली तनातनी के बाद अब दोनों देश पानी के डेटा को लेकर एक बार फिर आमने-सामने आ सकते हैं। बता दें कि चीन ने ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों के पानी का डेटा इस साल भारत को नहीं दिया, जबकि इनसे बाढ़ का पूर्वानुमान लगाने में मदद मिलती है। दोनों देशों के बीच हर साल 15 मई से 15 अक्टूबर की अवधि के बीच ब्रह्मपुत्र के पानी का डेटा देने के लिए 2013 में समझौता हुआ था। फिर 2015 में सतलुज के लिए भी समझौता हुआ था।
इस डेटा से भारत को बाढ़ के बारे में जानकारी मिलती है और मॉनसून के सीजन में नदियों में पानी के बढ़ने से पहले जरूरी व्यवस्था करने में आसानी होती है। अधिकारियों ने बताया कि चीन ने इस साल नदियों से जुड़ा डेटा उपलब्ध नहीं कराया है। अधिकारियों ने बताया कि उन्हें उम्मीद थी कि चीन डोकलाम विवाद के बाद भारत को डेटा मुहैया कराना शुरू करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
भारत ने अगस्त में डोकलाम विवाद के दौरान कहा था कि चीन ने ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों से जुड़ा पानी का डेटा अभी उपलब्ध नहीं कराया है। उसी महीने चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गैंग शुआंग ने कहा था कि तिब्बत में मौजूद डेटा कलेक्शन सेंटर को बाढ़ के कारण नुकसान पहुंचा और इसका मरम्मत किया जाना है। हालांकि भारत चीन की इस दलील से सहमत नहीं था क्योंकि इसी दौरान खबर आई थी कि चीन ने बांग्लादेश को पानी का डेटा शेयर किया था। चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स में वहां के कुछ विशेषज्ञों ने माना था कि डोकलाम विवाद के मद्देनजर यह डेटा रोका गया है।इस साल ब्रह्मपुत्र ने उत्तर पूर्व में बाढ़ से भारी तबाही मचाई थी और असम में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी।
ब्रह्मपुत्र नदी के लिए भारत और चीन के बीच पानी का डेटा शेयर करने का समझौता अगले साल खत्म होने जा रहा है। पानी का डेटा अमूमन मुफ्त साझा किया जाता है, लेकिन चीन इसकी कीमत वसूल करता है। दोनों देशों के संबंध पहले से ही कई मुद्दों पर तनावपूर्ण हैं, लेकिन डोकलाम का विवाद खत्म होने के बाद समझा जा रहा था कि चीन पानी का डेटा शेयर करेगा। जानकारों का कहना है कि चीन पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है।वाली लापता पत्रकार