नई दिल्ली
मोदी सरकार ने अपने अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल के जरिए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि देश के उच्चतम न्यायालय ने ‘बहुत बड़े अधिकार’ हासिल कर लिए हैं और यह ‘दुनिया का सबसे शक्तिशाली कोर्ट’ बन गया है। वेणुगोपाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान में पहले से दर्ज मौलिक अधिकारों में ‘कम से कम 30 नए अधिकार’ जोड़ दिए हैं। इस बात का कड़ा जवाब देते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा, ‘इस अदालत के पास बहुत बड़े अधिकार तथ्य पर आधारित न्याय करने के लिए हैं। हमें हर मामले में संतुलन बनाना होता है। हमें पता है कि हम लक्ष्मण रेखा पार नहीं कर सकते हैं।’ वहीं जस्टिस डी वाई चंद्रचूड ने कहा कि ‘सामाजिक न्याय’ के मामलों में अदालत ‘अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती है।’
पांच जजों की बेंच के सामने इस मामले पर बहस हो रही थी कि संसदीय रिपोर्टों का उपयोग अदालती कार्यवाही में हो सकता है या नहीं। वेणुगोपाल ने ‘अदालतों के अपनी सीमा से आगे बढ़ जाने’ की अपनी दलील के साथ कहा कि राजमार्गों के करीब की शराब की दुकानों पर कोर्ट की रोक से एक लाख जॉब्स चली गईं। कोर्ट ने इस पर कहा कि इस मामले में वह भूतल परिवहन मंत्रालय के ही एक नियम को लागू कर रहा था, जिसे सड़क दुर्घटनाओं में लोगों की मौत के मामले घटाने के लिए बनाया गया था।
यह बहस उस याचिका पर हुई, जिसमें ड्रग ट्रायल करने वाली दवा कंपनियों से मुआवजे की मांग की गई है। कंपनियों ने दलील दी है कि उनकी आलोचना करने वाली एक संसदीय समिति की रिपोर्ट का अदालती कार्यवाही में उपयोग नहीं किया जा सकता है, जबकि याचिका दाखिल करने वालों की मांग है कि इस रिपोर्ट पर विचार किया जाए। वेणुगोपाल ने कहा कि कोर्ट को किसी भी संसदीय रिपोर्ट पर विचार करने से इसलिए परहेज करना चाहिए क्योंकि ऐसी रिपोर्ट्स के साथ सांसदों के विशेषाधिकार जुड़े होते हैं। उन्होंने कहा कि अदालत संविधान के रक्षक की अपनी तय भूमिका तक रहने के बजाय कानून बनाने की ओर बढ़ रही है, जबकि संविधान ने यह काम उसके लिए तय नहीं किया है।
वेणुगोपाल ने कहा, ‘आपने आर्टिकल 21 में कम से कम 30 दूसरे अधिकार जोड़ दिए हैं। किसी भी तरह इन्हें अगले 50 वर्षों में भी लागू नहीं किया जा सकता है।’ वहीं जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि ‘अगर कोई चीज सार्वजनिक दायरे में हो या सामाजिक कल्याण के लिए अहम हो तो क्या सुप्रीम कोर्ट को आंखें बंद कर लेनी चाहिए?’ उन्होंने एक काल्पनिक स्थिति का उदाहरण दिया और कहा कि अगर कोई संसदीय समिति सिफारिश कर दे कि गर्भपात के लिए टाइम पीरियड 20 से बढ़ाकर 25 हफ्ते कर दिया जाए और सरकार इस पर कदम उठाने में नाकाम रहे तो क्या कोर्ट इसका संज्ञान नहीं ले सकता है?