मध्यप्रदेश पुलिस ने बिहार मॉडल की तर्ज पर दलितों से जुड़े मामलों की जांच करना शुरू कर दिया है. शिवराज सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति एक्ट में आने वाले मामलों की जांच का दायरा बढ़ाते हुए नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है.मध्यप्रदेश पुलिस में एसटी, एससी से जुड़े मामलों की जांच के लिए हर जिले में एक अजाक थाना है. इन थानों के इंचार्ज डीएसपी रैंक के अधिकारी होते हैं. यही अधिकारी थाने में आने वाली शिकायतों की जांच से लेकर उसकी पूरी विवेचना कर कोर्ट में चार्जशीट दायर करते हैं.
दरअसल, एक ही अधिकारी पर तमाम मामलों की जांच का दबाव होने की वजह से फरियादी को न्याय मिलने में देरी हो रही थी. साथ ही फरियादी को अपना क्षेत्र छोड़कर शिकायत के लिए अजाक थाने के चक्कर काटने पड़ते थे. कोर्ट में चार्जशीट फाइल करने में समय लगता था. लंबित मामलों की संख्या भी हर साल बढ़ती जा रही थी.इन तमाम समस्याओं से जूझ रहे पुलिस मुख्यालय ने बिहार पुलिस के एसटी एससी एक्ट की विवेचना से जुड़े मॉडल का अध्ययन किया और उसे एमपी में लागू करने के लिए सरकार के पास प्रस्ताव भेजा. पुलिस मुख्यालय के प्रस्ताव को हरी झंडी देते हुए सरकार ने एसटी एससी एक्ट से जुड़े मामलों की जांच के अधिकार का दायरा बढ़ा दिया.
दलित अपराधों को लेकर पहले क्या था…
-फरियादी को शिकायत के लिए जिले के अजाक थाने में जाना पड़ता था.
-थाने में होने वाली शिकायत की विवेचना डीएसपी रैंक के अधिकारी करते थे.
-FIR से लेकर चार्जशीट तक की कार्रवाई डीएसपी रैंक के अधिकारी करते थे.
-कोर्ट में तय समय सीमा होने के बावजूद 60 दिनों के बाद चार्जशीट पेश हो रही थी.
-शिकायत के बाद फरियादी को बार-बार अजाक थाने के चक्कर काटना पड़ता था.
-राजपत्रित अधिकारी के पास ही जांच करने का अधिकार था.
दलित अपराधों को लेकर अब क्या है…
-फरियादी अपनी शिकायत स्थानीय थाने में दर्ज करा सकता है.
-थाने में होने वाली शिकायत की विवेचना थाने का इंस्पेक्टर कर सकता है.
-डीएसपी के साथ इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी भी मामले की जांच कर सकता है.
-FIR से लेकर चार्जशीट तक की कार्रवाई इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी करेंगे.
-कोर्ट में तय समय सीमा 60 दिनों के अंदर ही चार्जशीट पेश होगी.
-स्थानीय थाने में शिकायत करने से अजाक थाने के चक्कर काटने की जरूरत नहीं.
-राजपत्रित अधिकारी के अलावा भी इंस्पेक्टर को जांच का अधिकारी मिला.
अनुसूचित जाति, जनजाति एक्ट के अपराधों की विवेचना अजाक थाने के इंचार्ज डीएसपी रैंक के अधिकारी करते थे. थानों में बढ़ती शिकायत और जांच के बढ़ते दबाव की वजह से 2016 में प्रदेश के अजाक थानों में दर्ज हुई 7504 एफआईआर में से बीस प्रतिशत मामले पेंडिंग रह गए.
अमूमन हर साल लंबित मामलों की यही स्थिति रहती है. लेकिन सरकार के नोटिफिकेशन के बाद स्थानीय थानों में मामले की जांच और उसकी विवेचना थाने के इंस्पेक्टर से किए जाने से अब लंबित मामलों की संख्या न के बराबर रह जाएगी. साथ ही स्थानीय थाना स्तरों पर ही दलितों के मामलों का निराकरण और उन्हें न्याय मिलेगा.
भोपाल के डीएसपी, दिनेश जोशी का कहना है कि, समाज के पिछड़े तबके को न्याय दिलाने के लिए सरकार ये अच्छा फैसला है. गंभीर मामलों की जांच, तो डीएसपी रैंक के अधिकारियों के जरिए ही कराई जाएगी, लेकिन रोजाना आने वाली शिकायतों का निराकरण और फरियादी को न्याय स्थानीय थाना स्तर पर ही मिलेगा.