सरकार कन्ज्यूमर प्रॉडक्ट्स और रोजमर्रा की जरूरतों के सामान के बाद अब अगले दौर की समीक्षा में वॉशिंग मशीन और रेफ्रिजरेटर जैसे कन्ज्यूमर ड्युरेबल्स पर जीएसटी रेट में कटौती करेगी। अभी इन वाइट गुड्स पर 28% टैक्स लग रहा है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि कन्ज्यूमर ड्युरेबल्स पर टैक्स कम करने से इनकी खरीदारी बढ़ेगी। दरअसल, ऊंची टैक्स दर की वजह से इस सेक्टर में मंदी की शिकायतें आ रही हैं। इसके अलावा, सरकार महिलाओं को भी खुश करना चाहती है, इसलिए टैक्स रेट घटाकर उनकी सहूलियतों के सामान सस्ते करने की योजना है।
अधिकारी ने बताया कि रेस्ट्रॉन्ट्स में खाने पर टैक्स कम करने के पीछे एक मकसद महिलाओं को खाना बनाने से कुछ हद तक मुक्ति दिलाना भी था जिनके दिन की शुरुआत बच्चों के लिए लंच पैक करने से होता है और यही सिलसिला रात तक जारी रहता है। दुनियाभर में यह मान्यता है कि डिश वॉशर्स और वॉशिंग मशीन्स जैसे प्रॉडक्ट्स महिलाओं का बोझ कम करते हैं, जिससे उन्हें खुद और उत्पादक कार्यों के लिए ज्यादा वक्त मिल पाता है।
वैसे भी डिश वॉशर्स जैसे प्रॉडक्ट्स भारत में बड़े पैमाने पर आयात किए जाते हैं और जीएसटी घटाने से देश में इनके निर्माण को बढ़ावा दिया जा सकता है, ताकि दक्षिण कोरिया और अन्य देशों से आयात कम किया जा सके। कुछ वाइट गुड्स पहले से ही 12% से 18% के टैक्स ब्रैकेट्स में हैं। डेलॉयट इंडिया के पार्टनर एम एस मणि ने कहा, ‘सभी कन्ज्यूमर ड्युरेबल्स पर 18% का एक टैक्स लगा दिया जाए तो घरेलू निर्माताओं को बड़ा फायदा पहुंचेगा क्योंकि कीमत में अच्छी-खासी कटौती हो जाएगी जिससे इनकी मांग बढ़ जाएगी। डिश वॉशर्स और एयर कंडीशनर्स जैसे कुछ सामान कुछ वक्त से लग्जरी आइटम्स की कैटिगरी में डाल दिए गए हैं।’
पिछले सप्ताह पांच सितारा होटलों को छोड़कर अन्य रेस्ट्रॉन्ट्स पर जीएसटी रेट्स 18% से घटाकर 5% कर दिया गया, हालांकि इनपुट टैक्स क्रेडिट खत्म करने से कई फूड चेन ने कीमतें बढ़ा दीं। जीएसटी काउंसिल की पिछली बैठक में 200 आइटम्स पर रेट कट से स्पष्ट हो गया कि वाइट गुड्स और सीमेंट जैसी कमोडिटीज लग्जरी आइटम्स हैं नहीं, लेकिन इन पर ज्यादा टैक्स इसलिए लगाया गया है कि राजस्व घटकर वित्तीय घाटे का बोझ न बढ़ा दे। दरअसल, सरकार 12% एवं 18% को एक दर में मिलाकर और प्रोसेस्ड फूड्स एवं अन्य घरेलू इस्तेमाल के सामान को 5% के ब्रैकेट में रखकर भविष्य में तीन टैक्स रेट्स ही रखना चाहती है।