खंडवा
लोकतंत्र पर शासन तंत्र हावी है। नदियों का मौलिक स्वरूप बदला जा रहा है। ओंकारेश्वर में नर्मदा की दशा देखकर कष्ट हो रहा है। बिना सोचे उठाए गए कदम से ये हालात बने हैं। नर्मदा की मौलिकता बनी रहना चाहिए। व्यापार तंत्र और राजनीति तंत्र ने ढोंगियों को संत बना दिया है। सत्ताधीश हिंदू संगठनों की कमजोरी जानते हैं, इसलिए मंदिर का मुद्दा गायब है। देश आज भी सैद्धांतिक धरातल पर परतंत्र है। यहां आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है।
यह बात जगन्नाथ्पुरी की गोवर्धनपीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने मंगलवार को खंडवा में पत्रकारों से चर्चा करते हुए कही। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों की फूट नीति पर शासन तंत्र चल रहा है। नदियों की दिव्य जलधारा को विलुप्त करना विदेशियों का षड्यंत्र है। उत्तराखंड में गंगा, हरियाणा में यमुना और मध्यप्रदेश में नर्मदा का मौलिक स्वरूप बदल गया है। विकास के नाम पर यह षड्यंत्र हो रहा है। विद्युत उत्पादन और सिंचाई का लालच देकर जनमत को शासन अपनी ओर कर रहा है। भले नदी रहे या न रहे शासन को कोई मतलब नहीं है।
कई मुस्लिम राम मंदिर के पक्षधर
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी ने मेरे पास प्रस्ताव भेजा था कि एक ही स्थान पर मंदिर और मस्जिद बन जाएं पर मैंने हस्ताक्षर नहीं किए। विहिप के अशोक सिंघल ने मुझसे कहा था कि हम सब मिलकर मोदी को जिताएंगे, मैंने उसी समय कह दिया था कि वे राम मंदिर नहीं विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं। सत्ताधीशों को हिंदू संगठनों की कमजोरी पता है। अब तो मामला न्यायालय में है। दिसंबर से सुनवाई शुरू होगी। पूरा हिंदू समाज और कई मुस्लिम भी अयोध्या में राम मंदिर बनने के पक्षधर हैं।
उन्होंने कहा कि भारत अब भी स्वतंत्र नहीं सैद्धांतिक रूप से परतंत्र है। वन, गौमाता, नदियां, किसान और महिलाएं संकट में हैं। जनप्रतिनिधियों को पार्टी से ऊपर उठकर देश के लिए सोचना होगा। देश को आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है। धर्म, विज्ञान, दर्शन और व्यवहार एक जगह पर आकर एक हो जाते हैं। केवल भारत का सनातन हिंदू धर्म ही है जो दर्शन और विज्ञान को व्यवहार में दर्शाता है। वैदिक ऋ षियों ने ही अर्थशास्त्र, दर्शनशास्त्र, गणित, चिकित्सा, नीति, वेद और वास्तु शास्त्र विश्व को दिए हैं।
विष्णु पादुकाओं के कराए दर्शन
खंडवा में धर्मसभा के लिए दो दिवसीय दौरे पर शंकराचार्य खंडवा आए हुए हैं। वे भक्त अखिलेश गुप्ता के निवास पर ठहरे हुए हैं। उन्होंने श्रद्धालुओं को विष्णु पादुकाओं के दर्शन कराए। मान्यता है कि ये पादुकाएं देवर्षि नारद ने आदिगुरु शंकराचार्य को धर्म जागरण के लिए दी थीं। तब से यह पादुकाएं गोवर्धनमठ पीठ में हैं। शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती 137 से अधिक ग्रंथों की रचना कर चुके हैं। इनमें 13 वैदिक गणित के हैं। 110 देशों के गणितज्ञ उनसे मार्गदर्शन लेने पहुंच चुके हैं।