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PIL की बाढ़ पर भड़का SC, कहा- अब सोचने की जरूरत फीचरराष्ट्रीयNov 25, 2017

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नई दिल्ली

जनहित याचिकाओं के इस्तेमाल के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि इस व्यवस्था पर अब पुनर्विचार का समय आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जनहित के नाम पर चर्चा पाने और राजीनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस व्यवस्था का इस्तेमाल किया जा रहा है। 2015 में छत्तीसगढ़ के रायपुर में पीएम मोदी का मंच गिरने के मामले में एनआईए और सीबीआई जांच की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एके सीकरी और अशोक भूषण की बेंच ने यह बात कही।

यह याचिका सूबे के पंजीकृत दल छत्तीसगढ़ी समाज पार्टी ने दायर की थी। इस पर शीर्ष न्यायालय ने फटकार लगाते हुए 1 लाख रुपये का जुर्माना भी ठोका। इससे पहले याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में भी याचिका दायर की थी, लेकिन वहां से खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। यही नहीं वादी ने पीएमओ ऑफिस को भी इस केस में पार्टी बना लिया। याचिका में कहा गया था कि बड़े खर्च के साथ पीएम मोदी के मंच को जिस तरह से तैयार किया गया, उसकी गुणवत्ता बेहद खराब थी। राज्य सरकार के अधिकारियों की ओर से इसमें भ्रष्टाचार और अवैध तरीके अपनाए गए। यह पीएम की सुरक्षा का मसला था और इस मामले की जांच का आदेश दिया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका के पहुंचने पर शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए यह तुच्छ याचिका दाखिल की है। इसके साथ ही अदालत ने 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। याची के वकील की ओर से केस की मेरिट पर बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट भड़क गया। याचिकाकर्ता पर समय की बर्बादी के लिए जुर्माना लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘समय आ गया है, जब कोर्ट को पीआईएल के कंसेप्ट पर पुनर्विचार करना चाहिए। कैसे कोई राजनीतिक दल घटना के दो साल बाद याचिका दाखिल कर सकती है। राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए यह पीआईएल का बेहूदा इस्तेमाल है। इस तरह की तुच्छ याचिका को लेकर कैसे कोई राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच सकता है। पीआईएल का इस्तेमाल ऐसे कामों के लिए नहीं होना चाहिए।’

इसके अलावा एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी की याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। इस याचिका में स्वामी ने केंद्र सरकार की ओर से कंपनियों को सिक्यॉरिटी क्लियरेंस देने की नीति पर सवाल उठाया था। इस पर अदालत ने कहा कि नीतिगत फैसलों की समीक्षा के लिए दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई नहीं की जा सकती।

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