गुजरात में मोरबी रैली के दौरान कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मच्छू बांध त्रासदी का जिक्र करते हुए कहा था कि त्रासदी के वक्त राहत कार्य के दौरान इंदिरा गांधी मुंह पर रूमाल डाले दुर्गंध से बच रही थीं, जबकि संघ कार्यकर्ता कीचड़ में घुस कर काम कर रहे थे. लेकिन मोदी के इस दावे की हकीकत तो कुछ और ही है. दरअसल, गुजराती पत्रिका चित्रलेखा में इंदिरा की तस्वीर के साथ एक और तस्वीर छपी थी, जिसमें संघ कार्यकर्ता शव ले जाते हुए खुद भी मुंह बांध रखे थे.
पत्रिका में इंदिरा की तस्वीर के साथ लिखा था मोरबीनु जलतांडव, जबकि संघ कार्यकर्ताओं की फोटो के साथ नीचे लिखा था-गंधाती पशुता, महकती मानवता. इनमें से केवल इंदिरा की तस्वीर का ही मोदी ने जिक्र किया था, जबकि संघ कार्यकर्ता भी मुंह पर रुमाल बांधे हुए थे. बता दें कि मच्छू बांध त्रासदी भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदियों में गिनी जाती है. बताया जाता है कि 1979 के वक्त लगातार तीन दिन भारी बारिश से मच्छू बांध ओवर फ्लो हो रहा था.
तभी अचानक 11 अगस्त को तीन बजे के करीब डैम टूट गया कुछ ही मिनटों में पानी शहरी इलाकों में घुसा और तबाही मचा दी.लोगों को संभलने का मौका तक नहीं मिला. तबाही का मंजर ऐसा था कि पशु हो या इंसान सभी की लाशें शहर में चारों ओर बिछी हुई थी.
उस वक्त आए आंकड़ों के मुताबिक इस त्रासदी में हजारों की तादाद में लोगों की मौत हुई थी. साथ ही मोरबी की कई एतिहासिक इमारतें जमींदोज हो गई थी.आज भी मोरबी के लोगों में इस त्रासदी का खौफ बना हुआ है. यही वजह है कि जब भी यहां भारी बारिश होती है तो बांध टूटने की अफवाह प्रशासन के लिए मुसीबत बन जाती है.