पेइचिंग
डोकलाम विवाद पर चीन की ओर से तथ्यों को छुपाए जाने की बात सामने आ रही है। दरअसल जिस ‘सिक्किम-तिब्बत संधि 1890’ के दस्तावेज दिखाकर चीन डोकलाम पर दावा करता है, उस पर तिब्बत की सरकार ने हस्ताक्षर नहीं किए थे। बता दें कि बीते 16 जून को चीनी सैनिकों ने डोकलाम में एक सड़क निर्माण का काम शुरू किया था जिसके बाद से इस इलाके में भारत और चीन के सैनिक आमने-सामने हैं। इस इलाके पर भूटान का भी दावा है।
1890 की संधि को एकतरफ कर दें, चीन ने तो 1960 तक भूटान-तिब्बत और सिक्किम-तिब्बत सीमाओं को लेकर किसी संधि पर सहमति नहीं दी थी। विश्लेषकों का कहना है कि यह एक और तथ्य है कि डोकलाम पर दावा करते वक्त चीन ने ऐसे किसी दस्तावेज का जिक्र नहीं किया। तिब्बत मामलों के जानकार और इतिहासकार क्लॉड आर्पी कहते हैं, ‘तिब्बत की सरकार ने 1890 के समझौते को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था क्योंकि उसे इसकी जानकारी नहीं दी गई थी या इसका हिस्सा नहीं बनाया गया था।’ आर्पी ने बताया कि संधि से कुछ साल पहले ब्रिटिश और तिब्बती सैनिकों के बीच संघर्ष हुआ था, और इसलिए यह एक वजह हो सकती है कि तिब्बती सरकार ने संधि को नहीं स्वीकार किया था। चीन यह मानकर चल रहा था कि संधि के लिए तिब्बत की स्वीकृति की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि इस पर हस्ताक्षर करने के लिए केंद्र सरकार ने ब्रिटिश अधिकारियों के साथ अपना राजदूत भेज दिया था।
लेकिन यह सच नहीं है। क्योंकि 1890 में चीन का तिब्बत पर नियंत्रण नहीं था, और सिर्फ एक स्थायी प्रतिनिधित्व था। असल में संधि को अस्वीकार करने के चलते 1904 में तिब्बत पर कब्जा करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने उस पर हमला (इसे यंगहज्बंड के नाम से भी जाता है) कर दिया था। चीन इस तथ्य पर चुप रहा है कि 1960 तक विवादित इलाके का हल नहीं निकला था, और लगातार पेइचिंग व भूटान के बीच विवाद की वजह बना हुआ है।
इस पर आर्पी कहते हैं, ‘1960 में अधिकारियों की बातचीत में चीन ने भूटान-तिब्बत सीमा और सिक्किम-तिब्बत सीमा पर बात करने से इनकार कर दिया।’ चीन के विदेश मंत्रालय ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के एक पत्र के कुछ अंश यह दिखाने के लिए पेश किए थे कि भारत सरकार ने 1890 की संधि को स्वीकार किया था जो डोकलाम के इलाके को भी कवर करती है।
लेकिन चीनी मंत्रालय ने यह तथ्य छुपाया कि नेहरू के समय भारत, भूटान और चीन के बीच सिक्किम-तिब्बत-भूटान तिराहे को लेकर कोई हल नहीं निकला था। भारत की चिंता यह है कि चीन जो सड़क बना रहा है वह इस तिराहे के काफी नजदीक है और इससे सीमा के इस इलाके के हल के लिए भविष्य की कोशिशों को नुकसान हो सकता है। इस पर क्लॉडे आर्पी का कहना है, ‘नेहरू ने केवल सिक्किम की उत्तरी सीमा के मुद्दे पर 1890 की संधि को स्वीकार किया था। तिराहे को लेकर कभी कोई सहमति नहीं दी गई।’ उन्होंने बताया, ‘इसका सबूत यह है कि इसे लेकर भारत और चीन के बीच 2012 में बातचीत हुई थी।’
इस मुद्दे पर दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई। वे इस बात पर सहमत हुए थे कि जब तक इलाके को लेकर कोई निर्णायक हल नहीं निकाला जाता तब तक मौजूदा स्थिति में कोई बदल नहीं होना चाहिए।