गुरुग्राम
करीब 6 महीनों से इस सरकारी प्राइमरी स्कूल का कॉरिडोर नन्हे बच्चों का क्लासरूम बना हुआ है। 4-4 साल के नन्हे बच्चों के लिए डेस्क नहीं है, उन्हें सख्त जमीन पर बैठना पड़ रहा है। इस स्कूल में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चे पिछले कुछ महीनों से गर्म हवाएं और लू के थपेड़े सह रहे थे और अब इनके ‘क्लासरूम’ में बारिश गिरती है। अक्षरों और नंबरों के साथ-साथ इन बच्चों को बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है।
इस स्कूल में बच्चों के लिए बनाए गए क्लासरूम्स में टूटे-फूटे फर्निचर, खराब सामान और ब्लॉक एजुकेशन ऑफिस की टेक्स्टबुक्स रखी हुई हैं, जिन्हें गुरुग्राम में बांटा जाना है। गुड़गांव प्रशासन के दफ्तर यानी मिनी सचिवालय से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित 6 क्लासरूम्स वाले इस प्राइमरी स्कूल के 2 क्लासरूम्स सरकारी गोदाम में तब्दील हो गए हैं।
शिवाजी नगर प्राइमरी स्कूल के प्रिंसिपल ओम प्रकाश ने बताया, ‘बाकी चार क्लासरूम्स भी बहुत छोटे-छोटे हैं। कई कक्षाओं में 70 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं और इतने छात्र उन कक्षाओं में नहीं बैठ सकते।’
सरकारी स्कलों की शिक्षा को लेकर हैरान कर देने वाले ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां छात्रों की बोर्ड परीक्षाएं भी जमीन पर बैठाकर ली गईं और टॉइलटों को भी क्लासरूम बना दिया गया। यह मामला था 2014 का, जहां द्रोणाचार्य गवर्नमेंट कॉलेज की एमए समाजशास्त्र की क्लास के लिए टॉइलट को क्लासरूम बनाया गया क्योंकि ज्यादा क्लासरूम्स के निर्माण के लिए पर्याप्त धन नहीं था।
शिवाजी नगर प्राइमरी स्कूल का दो एकड़ का कैंपस दो अन्य स्कूल साझा करते हैं- सरकारी माध्यमिक स्कूल व सरकारी प्राइमरी स्कूल ओम नगर। प्रिंसिपल ओम प्रकाश ने बताया, ‘एक महीने पहले स्कूल के पानी की टंकी खराब हो गई थी और अब बीते गुरुवार को निगम ने पानी की सप्लाई रोक दी है। टैंकर मंगाकर बच्चों की पानी की जरूरतों को पूरा करना पड़ा।’
शिवाजी नगर प्राइमरी स्कूल में 210 बच्चे पढ़ते हैं, और यहां महज एक टॉइलट है। इस टॉइलट से हमेशा बदबू आती रहती है। सफाईकर्मी न होने की वजह से नियमित सफाई नहीं हो पाती। प्रिंसिपल ने बताया, ‘मुझे इसकी सफाई के लिए हर महीने अपनी जेब से 1,400 रुपये खर्च करने पड़ते हैं।’