बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विधानसभा में शुक्रवार को शक्ति परीक्षण का सामना करने जा रहे हैं. ऐसे में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने खास रणनीति बनाई है. इस संबंध में पटना स्थित राबड़ी देवी के आवास पर राजद विधायकों की अहम मीटिंग हुई. सरकार के खिलाफ वोटिंग के लिए राजद नेतृत्व ने सभी पार्टी विधायकों को व्हिप जारी की है. राजद नेता भाई वीरेंद्र ने कहा कि हमलोग शक्ति परीक्षण के दौरान स्पीकर से गुप्त मतदान की मांग करेंगे. इससे तय हो जाएगा कि किसके हिस्से जीत आती है और किसके हिस्से हार.
इस बैठक में कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी और बिहार प्रभारी सीपी जोशी ने भी शिरकत की. वैसे बैठक के बाद दोनों नेताओं ने मीडिया से कोई बात नहीं की.आपको बता दें कि बिहार की 243 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 122 विधायकों की जरूरत होती है. दलगत स्थिति की बात करें तो बीजेपी- 53, जेडीयू -71 विधायक हैं. ऐसे में अगर दोनों पार्टियां साथ आती हैं तो बिहार में फिर से एनडीए की सरकार बन सकती है.
किस पार्टी के हैं कितने विधायक ?
जेडीयू-71, बीजेपी-53, राजद-80, कांग्रेस 27, रालोसपा- 2, लोजपा-2 हम- 1, माले-3, निर्दलीय पांच
कानून विशेषज्ञों से राय
इससे पहले राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने गुरुवार को कहा कि वह कानून विशेषज्ञों की राय ले रहे हैं और सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं, क्योंकि बिहार में सरकार के गठन के लिए नीतीश कुमार को आमंत्रित करने में एस.आर.बोम्मई दिशा-निर्देश का पालन नहीं किया गया है.
लालू ने संवाददाताओं से कहा, “एस.आर.बोम्मई दिशा-निर्देश स्पष्ट रूप से कहता है कि सरकार के गठन के लिए सबसे बड़ी पार्टी को बुलाया जाना चाहिए. बहुमत सदन के पटल पर साबित करना होता है. राजद को बुलाया जाना चाहिए था. हमने सर्वोच्च न्यायालय के वकील राम जेठमलानी से राय मांगी है.”
लालू को साजिश का शक
राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी को बुधवार को पटना बुलाए जाने के पीछे हमें षड्यंत्र होने का शक है. राजभवन ने हमें गुरुवार सुबह 11 बजे का वक्त दिया था, क्योंकि अफवाह थी कि शपथ ग्रहण समारोह शाम पांच बजे होगा. लेकिन शपथ ग्रहण समारोह 10 बजे ही निर्धारित किया गया था.
लालू प्रसाद ने कहा कि हमने सरकार बनाने का दावा करने के लिए वक्त मांगा था. जब हमारे नेताओं ने राज्यपाल से बुधवार रात मुलाकात की, तो उन्होंने हमसे कहा कि शपथ ग्रहण समारोह का पत्र नीतीश कुमार को दिया जा चुका है. इस मामले में एस.आर.बोम्मई के दिशा-निर्देशों की अनदेखी की गई है.
साल 1994 में एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ के मामले में संवैधानिक जरूरतों के मुताबिक, राज्य सरकार को बर्खास्त करने की केंद्र सरकार की शक्ति छीन ली गई थी. मामले में फैसला दिया गया था कि राज्य सरकार के आंतरिक मामलों से निपटने का एकमात्र समाधान सत्ता में मौजूद पार्टी की ओर से विश्वास मत के माध्यम से होगा.