लंदन
उन्होंने कहा, ‘हमने जितने भी लोगों से बात की, उन्हें लगता है कि महिलाएं, पुरुषों द्वारा दिए जाने वाले लालच, सोशल मीडिया और शादी के प्रस्ताव से प्रभावित होकर ISIS में चली जाती हैं, जबकि असलियत में ऐसा है नहीं। ISIS की महिला सदस्यों को जानने वाले कई पुरुषों और महिलाओं से बात करने के बाद यह पाया गया कि कई महिलाओं की नजर में ISIS महिलाओं के लिए ‘सशक्तीकरण’ का स्रोत है। यह जानते हुए भी कि शरिया कानून को मानने वाला ISIS महिलाओं पर कितने जुल्म और अत्याचार करता रहा है।’
रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ लोगों ने बताया कि ISIS जॉइन करने वाली कई महिलाएं पारंपरिक तौर पर और साथ ही पश्चिमी देशों द्वारा थोपे गए जेंडर नॉर्म्स को भी चुनौती देना चाहती थीं। इसके जरिए वह अपने लिए एक नई पहचान बनाना चाहती थीं। यह बात भी सामने आई कि महिलाओं की ऐसी सोच के पीछे नीदरलैंड और फ्रांस जैसे देशों में बुर्का पर बैन होना भी है। महिलाओं को महसूस होता था कि इन देशों में रहते हुए वह अपने धर्म को अपने तरीके से व्यक्त नहीं पा रही थीं। इसके अलावा मुस्लिम समुदाय के भीतर स्वीकार्यता की कमी ने भी महिलाओं को ऐसा सोचने के लिए प्रेरित किया है।
विंंटरबॉथम ने कहा कि रुढ़िवादी परिवारों में रह रहीं महिलाओं के भी ISIS के प्रति आकर्षित होने की काफी आशंका रहती है। उनके अनुसार, ‘हमने ऐसी महिलाओं से बात की जिनका चरमपंथीकरण नहीं किया गया, पर वे समझ सकती थीं कि कुछ लड़कियां आखिर क्यों सीरिया और इराक गई होंगी…एक ‘अच्छे मुस्लिम’ की तरह रहने और जीने के लिए। ISIS महिलाओं के बीच ‘अच्छे मुस्लिम’ वाली इस इमेज को पेश करने में कामयाब रहा है। अब यह सिर्फ एक मासूम जिहादी दुल्हन बनने का मामला नहीं रहा। अब तो महिलाएं खुद कह रही हैं कि यह मेरा धर्म है, मेरे राजनीतिक विचार हैं और मैं अपने तरीके से जीना चाहती हूं।’
शोध की लेखिका ने कहा कि ‘सशक्तीकरण’ का सिद्धांत यहां बिल्कुल अलग है। महिलाओं को लगता है कि उनका सशक्तीकरण होगा लेकिन एक बार वहां चले जाने के बाद, उनके साथ ऐसा कुछ नहीं होता।’