दिल्ली में प्रदूषण वाला मौसम एक बार फिर आने वाला है। शहर फिलहाल ठीक स्थिति में जरूर दिख रहा है क्योंकि प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए बनाई कुछ योजनाओं पर काम हो रहा है। हकीकत यही है कि सर्दी के मौसम से पहले प्रदूषण नियंत्रित करने और हवा को साफ रखने के लिए कोई दीर्घकालीन योजना बनने की उम्मीद कम ही है।
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण अथॉरिटी ने अप्रैल में कोर्ट में हवा स्वच्छ रखने के लिए शॉर्ट, मीडियम और लॉन्ग टर्म प्लान जमा कराया है। केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार की सलाह पर इस योजना का ड्राफ्ट तैयार किया गया है। उम्मीद जताई जा रही है कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में फैसला दे सकती है।
दिल्ली में प्रदूषण का स्तर अक्टूबर से बढ़ने लगता है क्योंकि उसी समय पंजाब और हरियाण के किसान दान के गट्ठरों को जलाते हैं। इसके बाद दिवाली के समय आतिशबाजी के कारण भी हवा काफी प्रदूषित होती है। शॉर्टटर्म प्लान में ऐसे ही मौकों पर दिल्ली की हवा को दमघोंटू बनाने से बचाने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं। पर्यावरण के विशेषज्ञ लंबे समय से इस दौरान प्रदूषण को नियंत्रित करने की जरूरत बताते आए हैं। हालांकि, शॉर्टटर्म प्लान में ऐसे बहुत से मुद्दों की अनदेखी की गई है। अक्टूबर के महीने में होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने में एक बड़ी बाधा है कि उस दौरान दिल्ली का तापमान कम होने लगता है और हवा की गति भी कम रहती है।
1998 में ही सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए पब्लिक ट्रांसपॉर्ट को बढ़ावा देने की जरूरत पर बल दिया था। उस समय ही सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में साल 2000 तक कम से कम 10000 बसों की जरूरत की बात कही थी, जबकि अभी दिल्ली में सिर्फ 5,608 बसें ही चलती हैं। 2015 में दिल्ली सरकार ने 10000 बसों का वादा किया था, लेकिन अभी तक सिर्फ 2000 बसों का ही इंतजाम हो सका है।
दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर अनिल बैजल ने विभिन्न एजेंसियों से प्रदूषण नियंत्रण के उपायों पर चर्चा के लिए बैठक की थी। बैजल यह जानकर हैरान रह गए कि अभी तक ऐसी कई एजेंसी काम ही नहीं कर रही हैं। उन्होंने दिल्ली नगर निगम को निर्देश दिया कि वह कंस्ट्रक्शन साइट्स पर धूल को नियंत्रित करने के लिए एक ऑपरेटिंग सिस्टम तैयार करें।