दिल्ली में एक मृत लड़की की दोनों किडनियां दान कर दो लोगों को नई जिंदगी दी गई है। सफदरजंग अस्पताल के यूरोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट विभाग के प्रमुख डॉ. अनूप कुमार का कहना है कि जहर से मौत के बावजूद सफल ऑर्गन ट्रांसप्लांट का यह दुनिया में पहला मामला है।साउथ दिल्ली के छतरपुर में रहने वाली 19 साल की शकुंतला ने मंगलवार को किसी झगड़े की वजह से परेशान होकर जहर खा लिया। उसे सफदरजंग अस्पताल लाया गया, लेकिन बुधवार को उसकी मौत हो गई।
इसके बाद ट्रांसप्लांट कोऑर्डिनेट ने शकुंतला के माता-पिता से संपर्क किया। बेटी की मौत के गम में डूबे माता-पिता शकुंतला की किडनी डोनेट करने को राजी हो गए। जिन दो लोगों में ये किडनी ट्रांसप्लांट की गई, उनमें से एक 39 साल की महिला है और पिछले 3 साल से सफदरजंग अस्पताल में डायलिसिस पर है। डॉ कुमार ने बताया कि वह इस तरह दो साल से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाती, लेकिन शकुंतला ने उन्हें नई जिंदगी दी है। दूसरी किडनी राम मनोहर लोहिया के एक मरीज में ट्रांसप्लांट की गई है।
शकुंतला के हार्ट ट्रांसप्लांट नहीं किया जा सका क्योंकि जब तक एम्स अस्पताल से डॉक्टर उसे लेने आते तब तक वो फेल हो चुका था। लीवर भी जहर की वजह से खराब हो गया था। शकुंतला के पिता ने बताया कि वह एक होनहार विद्यार्थी थी और उन्हें पूरा भरोसा था कि एक दिन उनका नाम रोशन करेगी। लेकिन, उससे पहले ही ऐसी दुखद घटना हो गई। पुलिस ने ऑर्गन ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया को जल्दी करने में काफी मदद की।
एक अनुमान के मुताबिक करीब 2 लाख से अधिक भारतीयों को ट्रांसप्लांटेशन की आवश्यकता होती है लेकिन उनमें से 10 फीसदी लोगों को यह उपलब्ध नहीं होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बहुत कम लोग ही ऐसे होते हैं जो अपने दुख को दरकिनार कर अपने प्रियजनों के अंग दान करने के लिए सहमत होने का साहस रखते हैं।
स्पेन में प्रति दस लाख लोगों के लिए 34 से ज्यादा लोग अंगदान करते हैं। दूसरे बड़े देशों में भी यह दर 20 से 30 है। इनमें फ्रांस, इटली और अमेरिका जैसे देश शामिल हैं। अधिकारियों का कहना है कि दिमागी रूप से मृत घोषित होने पर अंगदान की दर प्रति दस लाख लोगों पर 0.08 है।
अपोलो अस्पताल के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ. अनुपम सिब्बल का ऐसा कहना है कि शुरुआती स्तर पर अंग दान के प्रति जागरूकता फैलाने की जरूरत है। ज्यादातर लोगों को ब्रेन डेड की अवधारणा के बारे में नहीं पता है। वे यह नहीं जानते कि मृत शरीर के अंग दान से किसी दूसरे मरीज की जिंदगी बच सकती है। जब उन्हें इसके बारे में बताया जाता है तो वे लोग सदमे में आ जाते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अक्टूबर 2015 में मन की बात में लोगों से अंग दान करने का आग्रह किया था। उन्होंने कहा था कि इससे बड़ा दान और कुछ नहीं हो सकता। नतीजतन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने बाद में राज्यसभा को बताया कि मन की बात के इस संबोधन के बाद नेशनल ऑर्गन और टिशू प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) की वेबसाइट पर आने वाले लोगों की औसत संख्या हर रोज 665 से बढ़कर 1,407 हो गई है।