चीन के साथ डोकलाम में गतिरोध खत्म होने के बावजूद आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि सेना को दो मोर्चों पर टकराव के लिए तैयार रहना होगा। उन्होंने कहा है कि उत्तरी सीमा पर टकराव का पश्चिमी सीमा पर स्थित विरोधी देश लाभ उठाएगा, इसकी काफी संभावना है। राजधानी में ‘भविष्य की जंग’ विषय पर एक सेमिनार में आर्मी चीफ ने बुधवार को कहा कि भारत दो विरोधी देशों से घिरा है।
सेमिनार में अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा, ‘एक तो उत्तरी सीमा पर है (चीन) और दूसरा पश्चिमी सीमा पर (पाकिस्तान)। जहां तक हमारी पश्चिमी सीमा के विरोधी का सवाल है तो हम उसके साथ किसी समझौते की संभावना नहीं देखते हैं, क्योंकि वहां की राजनीति, जनता और सेना को यह समझा दिया गया है कि भारत उसके टुकड़े करना चाहता है। लंबे समय से छद्म युद्ध छेड़ दिया गया है। हमारा देश कब तक इस छद्म युद्ध को सहता रहेगा, कब फैसला करेगा कि बर्दाश्त की सीमा पार हो गई है और कब जंग शुरू हो जाएगी, इसके बारे में पहले से कुछ कहना मुश्किल है।’
आर्मी चीफ ने कहा कि इस प्रॉक्सी वॉर के कारण पश्चिमी सीमा पर टकराव की संभावना हमेशा बनी हुई है। उन्होंने कहा, ‘जहां तक हमारी उत्तरी सीमा पर विरोधी का सवाल है, भुजाएं फड़काने का काम शुरू हो चुका है, धीरे-धीरे जमीनी दखल बढ़ाया जा रहा है, बर्दाश्त करने की हद को परखा जा रहा है। हमें इसके लिए तैयार रहना होगा कि यह स्थिति धीरे-धीरे टकराव की ओर ले जा सकती है। यह टकराव समय और जगह के मामले में सीमित होगा या पूरे मोर्चे पर फैल जाएगा, यह कहना मुश्किल है। इन हालात में हमें पश्चिम के साथ उत्तरी सीमा पर भी टकराव के लिए तैयार रहना चाहिए।’
रावत ने कहा कि जंग का तरीका बदल रहा है। उनके मुताबिक, ‘हम सैन्य ताकत के प्रयोग के आदि हैं, लेकिन जंग की शुरुआत सेनाओं के संपर्क में आने के कई महीने पहले शुरू हो चुकी होती है। अब बिना आमने-सामने आए जंग को विभिन्न देशों में पसंद किया जा रहा है। यह साइबर, पाइरेसी और सूचना से जुड़ा किसी तरह का युद्ध हो सकता है। हाल में सिक्किम के करीब हमारी उत्तरी सीमा पर जो हुआ, हमने देखा कि सूचना, मनोवैज्ञानिक और मीडिया के जरिये विरोधी ने जंग छेड़ी। इस तरह की जंग जारी रहेगी और हमें हर स्थिति के लिए तैयार रहना होगा।’
थल सेना की प्रधानता कायम रहे
आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत ने कहा है कि तीनों सेनाओं को जंग तालमेल बनाकर लड़नी होगी। जितना बेहतर तालमेल होगा, सशस्त्र बलों के लिए उतना ही अच्छा होगा। चूंकि जंग हमेशा जमीन पर लड़ी जाएगी, ऐसे में थल सेना की प्रधानता होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘नेवी और एयरफोर्स काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, लेकिन वे जमीन पर लड़ने वाले सशस्त्र बलों के सपॉर्ट में होंगे। हम भले ही समुद्र में प्रभावी हों, हवा में प्रभावी हों, लेकिन अंत में हमें अपने जमीन की सुरक्षा के लिए लड़ना होगा।’