उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और उड़ीसा जैसे राज्यों की गंदगी ने स्वच्छता अभियान का बेड़ा गर्क कर रखा है। 40 फीसद आबादी समेटने वाले ये राज्य कूड़े के ढेर पर हैं। केंद्र सरकार के लाख प्रयास के बावजूद इनके कानों पर जूं नहीं रेंग रहा है। इनकी लापरवाही के चलते स्वच्छ भारत मिशन की गति धीमी पड़ सकती है, जिससे वर्ष 2019 तक समूचे देश के स्वच्छ होने का लक्ष्य पूरा होने पर संदेह है। इसके लिए इन राज्यों में स्वच्छता के विशेष अभियान चलाने होंगे।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उत्तर प्रदेश में शुक्रवार को ‘स्वच्छता ही सेवा’ की शुरुआत की है। महामहिम के हस्तक्षेप से उत्तर प्रदेश में स्वच्छता अभियान को गति मिलने की संभावना जरूर बढ़ गई है। क्यों कि राज्य के हालात बहुत खराब हैं, जहां खुले में शौच करने वालों की संख्या घटाने में कोई प्रगति नहीं हो रही है। सूत्रों के मुताबिक राज्य में शौचालय बनाने का अभियान धनाभाव के चलते ठप है। हालांकि केंद्रीय स्वच्छता व पेयजल सचिव परमेश्वरन का कहना है कि केंद्रीय बजट का पर्याप्त आवंटन किया गया है। इसमें राज्य को अपना हिस्सा मिलाना होता है।
बीस करोड़ से अधिक आबादी वाले राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 37 फीसद घरों में शौचालय हैं। जबकि बिहार जैसे राज्य की आबादी 10 करोड़ है, जहां मात्र 30 फीसद घरों में शौचालय होने से लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। चार करोड़ से अधिक आबादी वाले उड़ीसा में 40 फीसद लोगों के घरों में शौचालय हैं। इसी तरह साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले झारखंड में मात्र 37 फीसद घरों में ही शौचालय बनाये गये हैं।
विश्व बैंक के एक आंकड़े के मुताबिक गंदगी के चलते सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) छह फीसद तक घट जाता है। इसमें सुधार के लिए स्वच्छता को सरकार ने उच्च प्राथमिकता दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद अब तक 195 जिलों ने खुद को खुले में शौच मुक्त घोषित कर दिया है। स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरुक बनाने के लिए देशव्यापी अभियान चलाये जा रहे हैं। सरकार में स्वच्छता व पेयजल के लिए कैबिनेट दरजे का मंत्री नियुक्त किया गया है। लेकिन स्वच्छता अभियान की गति को घटा रहे इन राज्यों में विशेष ध्यान देना होगा।