नई दिल्ली
‘जब तक मौत न हो जाए, तब तक फांसी पर लटकाया जाए।’ मौत की सजा का फैसला देते वक्त जज यही बोलते हैं। क्या मौत की सजा देने के इस तरीके को बदला जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करने को तैयार हो गया है। कोर्ट ने शुक्रवार को इस बारे में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर 3 हफ्ते में जवाब मांगा है।
कोर्ट में ऋषि मल्होत्रा नाम के वकील ने इस मसले पर याचिका दाखिल की है। उनका कहना है कि फांसी एक क्रूर और अमानवीय तरीका है। इसकी पूरी प्रक्रिया बहुत लंबी है। दुनिया के कई देशों ने फांसी का इस्तेमाल बंद कर दिया है। भारत में भी ऐसा होना चाहिए। याचिकाकर्ता ने मौत के लिए इंजेक्शन देने, गोली मारने या इलेक्ट्रिक चेयर का इस्तेमाल करने जैसे तरीके अपनाने का सुझाव दिया है। ऋषि मल्होत्रा ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने दलीलें रखीं। सुनवाई के दौरान बेंच ने याचिकाकर्ता की तरफ से उठाए गए बिंदुओं को चर्चा के लायक माना। चीफ जस्टिस ने टिप्पणी की, ‘इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि क्या मौत के लिए कोई कम तकलीफदेह तरीका अपनाया जा सकता है। सरकार इस पर 3 हफ्ते में जवाब दे।’
बता दें कि 14 साल पहले लॉ कमिशन ने जानलेवा इंजेक्शन का सुझाव दिया था। लॉ कमिशन ने अपनी 187वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि मौत की सजा पाए मुजिरमों को फांसी पर लटकाए जाने के मौजूदा प्रक्रिया में बदलाव किया जाना चाहिए। इसके लिए जानलेवा इंजेक्शन की प्रक्रिया अपनाए जाने की सिफारिश की गई थी। लॉ कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में जो भूमिका लिखी थी उसमें पहली लाइन थी- राज्य को बदले की भावना से दंड नहीं देना चाहिए। यह बात सम्राट अशोक ने कही थी।
लॉ कमिशन ने 17 अक्टूबर 2003 को केंद्र सरकार को अपनी 187वीं रिपोर्ट सौंपी थी। इसमें कहा गया था कि वचन सिंह बनाम भारत सरकार के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मौत की सजा पाए मुजरिमों को फांसी पर लटकाए जाने की जो मौजूदा प्रक्रिया है और जिस तरह से इस पर अमल किया जाता है उससे शारीरिक पीड़ा और वेदना से गुजरना होता है और यह क्रूर और दया रहित प्रक्रिया है। इसके बाद लॉ कमिशन ने मौजूदा प्रक्रिया में बदलाव की सिफारिश की। रिपोर्ट में कहा गया कि सीआरपीसी की धारा-354 (5) में मौत की सजा के बाद फांसी पर चढ़ाए जाने की प्रक्रिया का जिक्र है। इसके तहत कहा गया है कि मौत की सजा पाए शख्स को तब तक फांसी पर लटकाया जाए जब तक कि उसकी मौत न हो जाए। लॉ कमिशन ने अपनी सिफारिश में कहा था कि जानलेवा इंजेक्शन का प्रावधान रखा जाए। मौत की सजा पर अमल किस तरह से हो इसका विशेषाधिकार कोर्ट पर छोड़ा जाना चाहिए।