अहमदाबादa
पीएम नरेंद्र मोदी के गृह प्रदेश में दशकों बाद बैकफुट पर नजर आ रही बीजेपी ने गुजरात विधानसभा चुनावों को लेकर एक नया दांव खेलना शुरू किया है। हार्दिक पटेल के कांग्रेस की तरफ झुकाव को देखते हुए बीजेपी को पटेल वोट बैंक में सेंधमारी का खतरा दिख रहा है। अपने इस वोट बैंक को बचाने के लिए बीजेपी अब गुजरात में वोटरों को कांग्रेस के KHAM समीकरण की याद दिला रही है।
दरअसल KHAM गुजरात कांग्रेस के दिग्गज नेता और मुख्यमंत्री रहे माधवसिंह सोलंकी के दिमाग की उपज है। 1985 में इस समीकरण का इस्तेमाल कर सोलंकी ने 182 सीटों में से 149 पर कांग्रेस को जीत दिलाई थी। जीत के इस भारी अंतर का रेकॉर्ड आज भी कायम है। KHAM का मतलब है क्षत्रिय (ओबीसी सहित), हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम। गुजरात की 70 फीसदी आबादी को शामिल करने वाली इस इंजिनिरिंग ने उस वक्त कांग्रेस को अजेय बना दिया था। इस समीकरण में पटेल और ऊंची जातियों के वोट नहीं शामिल थे। बीजेपी अब पटेल वोटरों को यही याद दिला रही है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने जब ओबीसी नेता कल्पेश ठाकोर का सार्वजनिक स्वागत किया तो गुजरात के डेप्युटी सीएम नितिन पटेल समेत बीजेपी के तमाम नेता KHAM की याद दिलाने लगे। बीजेपी अब वोटरों को चेता रही है कि कांग्रेस 32 साल बाद एक बार फिर KHAM समीकरण पर वापस लौट आई है। कांग्रेस के इस समीकरण की वजह से पटेल और ऊंची जातियों के वोट पार्टी से छिटक गए। हालांकि तब कांग्रेस ने इन वोटों के बगैर भी रेकॉर्ड सीटें जीतीं।
गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के कांग्रेस उपाध्यक्ष से गुप्त मुलाकात की खबरों के बाद तो बीजेपी नेताओं ने एकसुर में यह बात कहनी शुरू कर दी है। दरअसल यह KHAM ही समीकरण भी था जो गुजरात में कांग्रेस के पतन का कारण बना, क्योंकि पार्टी इसे बनने के तुरंत बाद से ही कायम नहीं रख सकी। 1990 में चिमनभाई पटेल के नेतृत्व में जनता दल ने पटेल वोटों को अपने पक्ष में कर बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार बना कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया।
हालांकि 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के बाद यह गठबंधन टूट गया तब कांग्रेस ने सेक्युलर मोर्चे के रूप में इसे जीवित रखा। 1995 के बाद से बीजेपी ने सभी 5 विधानसभा चुनावों में जीत हासिल की। बीजेपी कांग्रेस के KHAM समीकरण में आने वाले क्षत्रिय, ओबीसी, दलित और आदिवासी वोट बैंक में हिंदुत्व के अजेंडे से सेंध लगाने में कामयाब रही। इसके साथ-साथ बीजेपी ने पटेल और अपर कास्ट वोटर्स को भी अपने साथ बनाए रखा।
मोदी ने मुस्लिमों में शिया-सुन्नी के बीच मतभेद को हवा देने के साथ-साथ KHAM के घटकों के बीच नए नेतृत्व को बढ़ाने पर लगातार काम किया। इस बीच गुजरात चुनावों में राजनीति एक बार फिर करवट लेती दिख रही है। ऐसे में सोमवार को जब हार्दिक पटेल और राहुल गांधी की मुलाकात की खबरें आईं तो टीवी डिबेट में शामिल बीजेपी के सभी नेता एक सुर से कहने लगे कि KHAM फिर से सामने आ रहा है। दरअसल यह बीजेपी की तरफ से अपने वोटर्स को एक संदेश देने की कोशिश भी है।
ऐसा नहीं है कि हार्दिक सारे पटेलों में स्वीकार्य हैं और उनके जाने से पूरा वोट बैंक साफ हो जाएगा। पर कांग्रेस हार्दिक की मदद से पटेल वोट बैंक में जितना भी सेंध लगा पाएगी वह बीजेपी के लिए नुकसान ही है। हार्दिक पटेल के सारे समर्थक युवा हैं औऱ उम्र के दूसरे और तीसरे दशक में हैं। ऐसे युवा पटेल वोटर्स अगर बीजेपी का साथ छोड़ देंगे तो यह अलार्मिंग होगा।