मुंबई
कई जानेमाने लेखकों की निगाह दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल किए गए एक मुकदमे पर टिकी हुई है। यह रिट पिटीशन मेरठ पब्लिशर्स असोसिएशंस ने 11 सितंबर को भारत सरकार के खिलाफ दाखिल की थी। इसमें आने वाला फैसला कई भारतीय लेखकों और प्रकाशन संस्थानों के आर्थिक समीकरण तय करेगा। अभी बड़े भारतीय लेखक अपने प्रकाशकों के साथ इस केस और जीएसटी पर चर्चा कर रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में रवि सुब्रमण्यन और अश्विन सांघी जैसे गल्प (फिक्शन) लेखक भी जीएसटी पर चर्चारत हैं।
लेखकों और प्रकाशकों के बीच मसला यह उभरा है कि रॉयल्टी पर जीएसटी कौन देगा? ‘द रोजाबेल लाइन’, ‘चाणक्याज चैंट’ और ‘द कृष्ण की’ जैसे उपन्यास लिखने वाले सांघी ने कहा, ‘लेखक को मिलने वाली रॉयल्टी पर 12% जीएसटी लगेगा। प्रकाशकों को यह जीएसटी रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म बेसिस पर चुकाना ही चाहिए, लेकिन समस्या यह है कि प्रकाशक इस पर इनपुट क्रेडिट क्लेम नहीं कर सकता क्योंकि किताबों पर जीएसटी नहीं लगता।’
कई लेखकों ने कहा कि सांघी और सुब्रमण्यन जैसे लेखकों ने तो प्रकाशकों की जेब से जीएसटी की लागत निकलवा दी, लेकिन नए लेखक तो ऐसा शायद ही करा पाएं। ‘इफ गॉड वाज ए बैंकर’ और ‘द बेस्टसेलर शी रोट’ जैसी किताबों के लेखक सुब्रमण्यन ने कहा, ‘बड़े लेखक तो प्रकाशकों को रॉयल्टी पर जीएसटी चुकाने के लिए राजी कर ले जाएंगे, लेकिन कम चर्चित और नए लेखकों को यह अपनी जेब से देना पड़ जाएगा। बड़ी समस्या हालांकि यह है कि प्रकाशक लगभग 5% मार्जिन पर काम करते हैं और उन पर दोनों ओर से दबाव पड़ रहा है।’
इंडस्ट्री के लोगों ने कहा कि किताबों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन यह टैक्स प्रकाशकों के कॉस्ट स्ट्रक्चर, खासतौर से इनपुट कॉस्ट्स को प्रभावित कर रहा है। खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर अभिषेक ए. रस्तोगी ने कहा, ‘किताबें मोटे तौर पर जीएसटी से बाहर हैं, लेकिन कई इनपुट्स टैक्सेबल हैं। लेखकों को दी जाने वाली रॉयल्टी पर 12% टैक्स लगता है और वह भी रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के तहत। प्रकाशकों पर इस टैक्स के असर के चलते आने वाले समय में किताबों के दाम बढ़ सकते हैं।’
टैक्स एक्सपर्ट्स ने कहा कि अभी किताबों जैसी एग्जेम्प्टेड सप्लाइ के मामले में इनपुट टैक्स के लिए रिफंड मैकेनिज्म नहीं है। यानी इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर बेनेफिट का रिफंड केवल टैक्सेबल गुड्स तक सीमित है। इसके चलते प्रकाशक टैक्स देनदारी में रॉयल्टी जैसी कॉस्ट को अजस्ट नहीं कर पा रहे हैं। जीएसटी के इस पेच के चलते स्कूलों और कॉलेजों की किताबें भी महंगी हो सकती हैं।