भारतीय रेलवे एक नवंबर से अपना नया टाइम टेबल जारी करने जा रहा है. विधानसभा चुनावों की दस्तक के बीच इस बार भारतीय रेलवे मुसाफ़िरों को कई नई सौगात देने वाला है. सूत्रों के मुताबिक नए टाइम टेबल में 50 नई ट्रेनों का ऐलान होने वाला है जबकि 500 से ज़्यादा ट्रेनों की रफ़्तार बढ़ाई जाएगी. इसके अलावा 14 ट्रेनों का विस्तार किया जाएगा और 2 पैसेंजर ट्रेनों को एक्सप्रेस ट्रेन का दर्ज़ा दिया जाएगा. सबसे ख़ास बात ये है कि इस टाइम टेबल में 48 ट्रेनों को सुपरफ़ास्ट ट्रेन का दर्ज़ा दिया जा रहा है.
48 ट्रेनों को सुपरफ़ास्ट बनाकर भारतीय रेलवे हर साल क़रीब 100 करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई कर लेगा. रेलवे में सुपरफ़ास्ट ट्रेन का दर्ज़ा उन ट्रेनों को दिया जाता है जिनकी औसत रफ़्तार 55 किलोमीटर प्रति घंटे से ज़्यादा होती है. लेकिन एक तरफ ये क़वायद है वहीं दूसरी तरफ पिछले तीन साल में शुरू की गई प्रीमियम ट्रेनों पर ग़ौर करें तो आनंद विहार और गोरखपुर के बीच चलने वाली हमसफर एक्सप्रेस ने पिछले तीन महीने के दौरान 50 में से 46 बार घंटों की देरी से सफर पूरा किया है.
नई दिल्ली से बनारस के बीच चलने वाली महामना एक्सप्रेस ने एक महीने में 26 बार अप-डाउन किया है. इसमें 23 बार यह ट्रेन घंटों लेट रही है. लोकमान्य तिलक से टाटानगर के बीच चलने वाली अंत्योदय एक्सप्रेस पिछले एक महीने में 17 सफर में 15 बार घंटों लेट रही है. कुछ यही हाल तेजस एक्सप्रेस का रहा है जिसकी तुलना हवाई जहाज तक से की गई. यह ट्रेन 3 महीने में 76 में 17 बार घंटों की देरी से मंज़िल तक पहुंची है.
ट्रेनों की इस हालत पर रेल मंत्री का कहना है कि रेल हादसों को रोकने के मकसद से ट्रैक के मरम्मत के लिए ट्रेनों की गति कम की गई है. ज़ाहिर है किसी ट्रेन को कागज पर सुपरफ़ास्ट बना देने से मुसाफिरों का कुछ भला नहीं होना है और साथ ही सर्दियों के साथ कोहरा भी भारतीय रेल के स्वागत में खड़ा है. यानी मुसाफिर सुपरफास्ट ट्रेनों के लिये चाहे जितने पैसे खर्च कर लें ट्रेनें तो अपनी सुस्त रफ़्तार से ही चलेगी.