Home राज्य पटेल-ठाकोर-मेवाणी की त्रिमूर्ति में कांग्रेस का सबसे बड़ा इक्का होंगे जिग्नेश?

पटेल-ठाकोर-मेवाणी की त्रिमूर्ति में कांग्रेस का सबसे बड़ा इक्का होंगे जिग्नेश?

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नई दिल्ली

गुजरात की सियासी जंग फतह करने के लिए कांग्रेस कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती. इसके लिए वो गुजरात की त्रिमूर्ति को गले लगाने की कवायद में जुटी है. पिछले दिनों अल्पेश ठाकोर को अपने संग जोड़ने के बाद अब वो हार्दिक पटेल से मोल भाव कर रही है, वहीं दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को लेकर भी जद्दोजहद हो रही है. कांग्रेस उन्हें अपने साथ जोड़ने की पूरी तैयारी कर चुकी है. जिग्नेश कांग्रेस की नैया पर सवार होते हैं तो गुजरात से कहीं ज्यादा दूसरे राज्यों में वे पार्टी के लिए फायदा का सौदा साबित हो सकते हैं.

त्रिमूर्ति को कांग्रेस का न्योता
गुजरात चुनाव की घोषणा होने से पहले ही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बड़ा दांव खेल दिया था. कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ने के लिए ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को साथ आने का न्योता दिया. इस न्योते को स्वीकार करते हुए सबसे पहले अल्पेश ठाकोर ने कांग्रेस का दामन थामा. पाटीदार अनामत आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल की भी कांग्रेस से सहमति बनती नजर आ रही है. जिग्नेश को साथ जोड़ने के लिए भी कांग्रेस ने अपने सारे घोड़े खोल दिए हैं. जिग्नेश मेवाणी दिल्ली में हैं. माना जा रहा है कि राहुल गांधी से मुलाकात करके वो कांग्रेस का दामन थाम लेंगे.

दलित आंदोलन से मिली पहचान
जिग्नेश मेवाणी तब अचानक सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने वेरावल में ऊना वाली घटना के बाद ‘आजादी कूच आंदोलन’ में 20 हजार दलितों को एक साथ मरे जानवर न उठाने और मैला न ढोने की शपथ दिलाई थी. जिग्नेश ने उस समय कहा था- ‘इस मुहिम में हम हर शहर, गली और गांव में जाकर बहुजन समाज के लोगों को शपथ दिला रहे हैं कि वे लोग अपनी पुरानी वर्ण व्यवस्था पर आधारित पेशा छोड़ें और बाबा साहेब अंबेडकर के बताए रास्ते पर चलकर शिक्षित बनें और अपने पांव पर खड़े हों’.

जिग्नेश का गुजरात से बाहर भी क्रेज
गाय की पूंछ तुम रखो और हमें हमारी ज़मीन दो’ जैसा नारा देने वाले जिग्नेश मेवाणी को दलित आंदोलन से गुजरात ही नहीं बल्कि देश भर में पहचान मिली. जिग्नेश पहले गुजरात की सड़कों पर उतरे और फिर दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड तक दलित मामलों को लेकर आवाज उठाई. इसके अलावा देश के अलग-अलग दलित मामलों को उठाने वालों के साथ हाथ मिलाया. यूपी में चंद्रशेखर, दिल्ली में प्रोफेसर रतन लाल के साथ वो नजर आए.

दलित गुजरात में कम, देश में ज्यादा
गुजरात में करीब 7 फीसदी दलित मतदाता हैं और देश में दलितों की संख्या 15 प्रतिशत है. दलित मतदाताओं के बड़े तबके ने 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के पक्ष में मतदान किया था. इसे समझने के लिए यूपी के नतीजों को देखें तो बीजेपी ने यहां सभी 14 सुरक्षित सीटें जीत ली थीं. इसी साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी उसने अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षित 86 में से 76 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं 2014 में बसपा वोट हिस्सेदारी में दूसरे नंबर पर रहने के बावजूद एक भी सीट नहीं जीत पाई जबकि विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर सिमटकर रह गई.

जिग्नेश मेवाणी युवा और तेज-तर्रार हैं. वो सिर्फ गुजरात में नहीं बल्कि देश में भी दलित मतों को कांग्रेस के पाले में वापस लाने में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं. मौजूदा दौर में कांग्रेस दलित युवा चेहरों की कमी से जूझ रही है. दलित चेहरे के नाम पर सिर्फ अशोक तंवर ही नजर आते हैं, लेकिन उनका ज्यादा जनाधार नहीं है. ऐसे में ऊना आंदोलन के जरिए पहचान बनाने वाले जिग्नेश में कांग्रेस को उम्मीद दिख रही है. कांग्रेस जिग्नेश को गुजरात ही नहीं बल्कि देश की सियासत में भी बाखूबी इस्तेमाल कर सकती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी दलित मतों की अहम भूमिका रहेगी, जिसमें जिग्नेश कांग्रेस के लिए मददगार साबित हो सकते हैं.

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