भोपाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर 2016 को जब 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद करने की घोषणा की थी, तब कैशलेस होने की बयार चल पड़ी थी. इसी बयार में मध्य प्रदेश के एक गांव को सबसे पहला ‘कैशलेस गांव’ करार दिया गया था. इसकी घोषणा करने के लिए बाकायदा बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया गया. लेकिन नोटबंदी के एक साल बाद इस गांव में भी देश के अन्य भागों की तरह ही कैश ही राजा है.
हर लेनदेन कैश में
इंडिया टुडे की एक टीम ने भोपाल से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बड़झिरा नाम के इस गांव का दौरा किया. इस दौरान पता चला कि नोटबंदी के एक साल बाद यहां हर लेनदेन कैश में हो रहा है. कैशलेस गांव होने के तमगे का कोई असर यहां नहीं दिखता है.
हुए थे बड़े आयोजन
नोटबंदी के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने बड़झिरा को पहला कैशलेस गांव घोषित किया था. इसके लिए बड़ा आयोजन किया गया था. राज्य सरकार ने बैंक ऑफ बड़ोदा के साथ मिलकर यहां कई कार्यक्रमों का आयोजन किया. इनमें पीओएस मशीनें और कैशलेस लेनदने के अन्य इंतजाम दिखाकर बताया गया कि आखिर कैसे नोटबंदी के बाद यह राज्य का पहला कैशलेस गांव बन गया है.
लेकिन अब नहीं दिखतीं पीओएस मशीनें
लेकिन एक साल बाद की तस्वीर बिल्कुल अलग है. कैशलेस होने की घोषणा के दौरान जितनी भी पीओएस मशीनें दिखाई गईं थीं, अब वह कहीं भी नजर नहीं आ रही हैं. यहां हर कारोबारी लेनदेन अब नगद में हो रहा है. गांव के एक कारोबारी अनिल तिलक बताते हैं कि कैशलेस गांव घोषित होने के कुछ हफ्तों बाद ही बैंक पीओएस मशीनों को वापस लेकर चला गया. कुछ कारोबारियों ने खुद ही इन मशीनों को वापस लौटा दिया. क्योंकि लोग कैशलेस लेनदेन बहुत कम करने लगे थे.
अब कुछ लोगों के पास ही हैं पीओएस मशीनें
अनिल ने बताया कि अब सिर्फ बड़े कारोबारी ही पीओएस मशीनें रखते हैं. उन्होंने कहा कि अब कोई कैशलेस लेनदेन नहीं करता. पीओएस मशीनों का रखने का कोई फायदा नहीं है.
अव्यवस्था ने घटाई कैशलेस लेनदेन में रुचि
कैशलेस लेनदेन में लोगों की रुचि कम होने के पीछे कई वजहे हैं. यहां बैंक ऑफ बड़ोदा की तरफ से लगी एटीएम भी हफ्तों तक खराब रहती है. इसके अलावा कैशलेस लेनदेन के लिए ग्रामीणों को एक्स्ट्रा चार्ज भी भरना पड़ता है. इसका सबसे ज्यादा असर पड़ा किसानों पर. जिन्हें पेमेंट तो चेक और आरटीजीएस पेमेंट के जरिये किया जा रहा है, लेकिन उन्हें हर चीज नगद देकर खरीदनी पड़ रही है.
लेना पड़ रहा है कर्ज
गांव के किसान शैलेंद्र बताते हैं कि गांव में अब हर लेनदेन नगद में होता है, लेकिन दुख इस बात का है कि हमें जो भुगतान किया जाता है, वह चेक के जरिये होता है. इसके चलते फसल की बुवाई और कटाई के लिए हमें कर्ज लेना पड़ता है. कैशलेस लेनदेन की वजह से हमें काफी दिक्कतें पेश आ रही हैं.
‘नोटबंदी से कुछ हासिल नहीं हुआ’
गांव के कारोबारियों का भी यही हाल है. उनका कहना है कि नोटबंदी से कुछ भी हासिल नहीं हुआ. कारोबारी रोहित सेन कहते हैं, ” ज्यादातर समय महिलाएं घर में अपने पास नगद बचा कर रखती थीं. इस नगदी से कई जरूरी काम निपट जाते थे, लेकिन नोटबंदी ने वह नगदी पूरी तरह से छीन ली है. इसके साथ ही कालेधन को पकड़ने के लिए नोटबंदी की शुरुआत की गई थी, लेकिन वह भी पूरा नहीं हुआ. इस तरह नोटबंदी पूरी तरह फेल साबित हुई है.”
नोटबंदी के कुछ दिन बाद ही कम हो गया कैशलेस लेनदेन
गांव वालों की मानें तो नोटबंदी के बाद जब इस गांव को कैशलेस गांव घोषित किया गया था. उसके कुछ हफ्तों तक ही कैशलेस गांव की धारण बनी रही और कुछ दिन तक लोगों ने कैशलेस लेनदेन किया भी. लेकिन यह कुछ दिनों तक ही रहा. उसके बाद सभी लोग फिर नगदी में लेनदेन करने लगे.