नई दिल्ली
9 से 5 की शिफ्ट के साथ-साथ सालाना वेतन वृद्धि, रिटेंशन बोनस और अच्छी-खासी संख्या में कैजुअल और प्रिवलेज लीव्स (सीएल और पीएल) जल्द ही बीते दिनों की बातें हो सकती हैं। नियुक्तियों और कामकाज के तरीकों में तेजी से बदलाव हो रहे हैं क्योंकि कंपनियां लागत घटाने और ऑटोमेशन जैसी नई तकनीकों को अपनाने की जरूरत महसूस कर रही हैं। पर्मानेंट जॉब्स या तीन से पांच साल तक के कॉन्ट्रैक्ट्स का फलसफा धीरे-धीरे मिट जाएगा।
केलीओसीजी की ओर से की गई वर्कफोर्स एजिलिटी बैरोमिटर स्टडी में सामने आया है कि अभी ही भारत में 56 प्रतिशत कंपनियों में 20 प्रतिशत वर्कफोर्स काम की समय-सीमा के आधार पर नियुक्त है। बात यहीं खत्म नहीं होती। 71 प्रतिशत कंपनियां इस तरह की नियुक्तियां अगले दो साल में बढ़ने की उम्मीद जता रही हैं जो एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे ज्यादा होंगी। आईटी, शेयर्ड सर्विस सेंटर्स और स्टार्टअप्स में सबसे ज्यादा नियुक्तियां काम की समय-सीमा के आधार पर ही हो रही हैं। इस आधार पर नियुक्त लोगों में फ्रीलांसर्स, टेंपररी स्टाफ, सर्विस प्रवाइडर्स, अलॉमनी, कंसल्टैंट्स और ऑनलाइन टैलंट कम्यूनिटीज आदि शामिल हैं।
इस मॉडल को गिग इकॉनमी का नाम दिया गया है क्योंकि कंपनियां स्थाई की जगह अस्थाई तौर पर कर्मचारियों की नियुक्तियां कर रही हैं। इस गिग इकॉनमी में तेज-तर्रार लोग मांग और पसंद के मुताबिक अलग-अलग प्रॉजेक्ट्स और संगठनों में घूमते-फिरते डिमांड-सप्लाइ मॉडल पर काम करते हैं।
जब अर्थव्यवस्था मंद पड़ती है और उभरती तकनीकें बिजनस मॉडल्स को चैलेंज करती हैं तो कंपनियों के लिए गिग इकॉनमी अपनाना ज्यादा भाता है क्योंकि इसमें उन्हें स्टाफ पर लागत घटाकर भी विभिन्न प्रकार के प्रफेशनल्स की सेवाएं पाने की सुविधा मिलती है। जब कंपनियों के सामने मार्केट की जरूरतों के मुताबिक अपने एंप्लॉयीज को रीस्किल करने की चुनौती पेश होती है तो उभरती तकनीकों में बड़ी संख्या में नौकरियां गिग इकॉनमी का हिस्सा बन जाती हैं।
काम के घंटे तय करने की आजादी यानी फ्लेक्सी आवर्स गिग इकॉनमी में फिट बैठते हैं। फ्लेक्सी आवर्स से एंप्लॉयीज को उनके वर्क आवर्स पर ज्यादा नियंत्रण मिलता है। यह अक्सर गिग वर्कर्स के लिए ही संभव हो पाता है क्योंकि उनकी नियुक्तियां किन्हीं खास प्रॉजेक्ट्स के लिए होती हैं जहां काम के आधार पर वेतन और तोहफे मिलते हैं।
जैसे-जैसे काम के मिजाज बदल रहे हैं, वैसे-वैसे भर्तियों के तरीके भी बदल रहे हैं। अगले दस सालों में आपके जॉब पाने और काम करने, दोनों के तरीके बहुत बदल जाएंगे। नई सदी में बालिग हो रहे लोग नए युग के चलन को पसंद तो कर रहे हैं, लेकिन इससे उनके रोजगार की अनिश्चितता भी बढ़ रही है।