नई दिल्ली
आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक और आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर इन दिनों अयोध्या विवाद को बातचीत से निपटाने की पहल करते दिख रहे हैं। इससे पहले भी राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद को निपटाने की 10 बार कोशिशें हुईं, लेकिन हर बार असफलता हाथ लगी। इस बार भी वीएचपी और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बातचीत के किसी भी प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। जानें, कब-कब हुईं विवाद को निपटाने की कोशिशें और क्यों नहीं हो सकी सुलह…
विवादित स्थल पर कब्जे को लेकर 1857 की क्रांति के दो साल बाद ही 1859 में विवाद हुआ था। इस पर ब्रिटिश प्रशासन ने भूमि की बाड़बंदी करते हुए दो अलग-अलग हिस्से कर दिए थे। एक हिस्से पर हिंदू पूजा कर सकते थे, जबकि दूसरा मुस्लिमों की इबादत के लिए छोड़ गया। लेकिन, यह व्यवस्था ज्यादा दिन तक कायम नहीं रह सकी और 1885 में महंत रघुबर दास ने राम चबूतरे पर छत डालने की मंजूरी के लिए याचिका दाखिल कर दी।
1990 में चंद्रशेखर का प्रयास रहा विफल
पहली कोशिश के करीब 130 साल बाद 1990 में तत्कलीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने एक बार फिर मसले को हल करने की कोशिश की। चंद्रशेख ने विश्व हिंदू परिषद के लोगों से इस मसले के समाधान के लिए बातचीत की कोशिश शुरू की, लेकिन बात नहीं बन सकी।
16 दिसंबर, 1992
6 दिसंबर, 1992 को बाबरी ढांचे का विध्वंस किया गया था। इसके ठीक 10 दिन बाद तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने जस्टिस लिब्राहन के नेतृत्व में एक इन्क्वॉयरी आयोग का गठन किया। इसने 17 साल बाद 2009 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, लेकिन इसमें क्या था, यह कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।
जून, 2002
तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने दफ्तर में अयोध्या सेल का गठन किया था। उन्होंने सीनियर पार्टी लीडर शत्रुघ्न सिंह को हिंदू और मुस्लिम नेताओं से बातचीत की जिम्मेदारी दी थी। लेकिन, यह पहल अपनी घोषणा से आगे नहीं बढ़ सकी।
26 जुलाई, 2010
इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ने फैसले को सुरक्षित रखते हुए सभी पक्षों को सौहार्दपूर्ण ढंग से मामले को सुलझाने का समय दिया था, लेकिन किसी ने इसमें रुचि नहीं दिखाई। अदालत ने कहा था कि वह 26 सितंबर को अपना फैसला सुनाएगी।
23 सितंबर, 2010
सुप्रीम कोर्ट में आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के लिए एक याचिका दायर की गई थी। इस पर शीर्ष अदालत ने इस याचिका पर इलाहाबाद हाई कोर्ट से फैसला सुनाने के लिए कहा था।