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भेल कारखाने के फीडर्स ग्रुप में करोड़ों का गोलमाल

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भोपाल

भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, भेल भोपाल के कारखाने के फीडर्स ग्रुप में करोड़ों रूपये का गोलमाल किये जाने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। एक ओर तो भेल के चेयरमेन फिजूलखर्ची को रोकने के लिए कड़े कदम उठा रहे है तो दूसरी और इस फीडर्स ग्रुप के कुछ अधिकारी इस ग्रुप को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं। चाहे बिना जरूरत चार करोड़ की मशीन खरीदने का मामला हो या फिर चहेते ठेकेदारों को फायदा पहुंचाने, बिना रिक्वायरमेंट चार करोड़ केे मटेरियल खरीदी, कर्मचारियों के खाली रहते टूल एण्ड गेज का काम आफलोड करना, विदेशी पंचिंग मशीन में गोलमाल, सीआईएम में कॉपरशीट का मामला हो सब विवादों में घिरे हुए है। इसको लेकर उच्च स्तरीय शिकायतें भी की गई हैं लेकिन विभाग के मुखिया अपनी पहुंच का फायदा उठाकर मामले को दबाने में लगे हुए है। सूत्र बताते है कि इस ग्रुप में सीबीआई ने भी कुछ फाईलें जप्त की है। आज भी यहां कर्मचारी इस गु्रप के मटेरियल मेनेजमेंट विभाग की जांच करने की मांग कर रहे हैं।

सूत्रों का कहना है कि फीडर्स ग्रुप में फाउन्ड्री, टूल एण्ड गेज, प्रेस शॉप, सीआईएम जैसे महत्वपूर्ण विभाग शामिल है। यही नहीं यहां का कुछ काम तो भेल की जगदीशपुर यूनिट में किया जाता है। टूल एण्ड गेज विभाग में गियर बनाने के काम आने वाला ब्लेंक सॉलिड आयरन बिना एन्टीसेपे्रटी ऑर्डर बिना प्लानिंग के ही कर डाला। इसकी लागत चार करोड़़ रूपये बताई जा रही है। भेल को नुकसान पहुंचाने के नये-नये फार्मूलें विभाग के मुखिया निकालने में लगे हुए हैं। गोविन्दपुरा की दो इंडस्ट्रीज को पंचिंग एवं टूल्स बनाने का काम दिया जा रहा है। जबकि यह काम कारखाने का टूल एण्ड गेज विभाग खुद करता है। विदेश से आयात की गई पंचिंग की स्पेशल स्टील एक इंडस्ट्रीज में भेजी जाती है जिसका वजन पांच टन बताया जा रहा है।

सूत्रों की माने तो इंडस्ट्रीज से भेल कारखाने में वापसी तक यह मटेरियल चार टन का रह जाता है। इसी तरह विदेश से ही आयात की गई सिलीकॉन लेमीनेशन शीट में भी भारी गोलमाल की आशंका जताई जा रही है। यह शीट कितनी आई इसका कितना उपयोग हुआ यह तो जांच के बाद ही पता लगेगा। सूत्र बताते है कि सीआईएम विभाग में कॉपर खरीदी का खेल भी जोरों पर है। मोटर वाईडिंग में लगने वाली यह शीट कितनी आई और कितनी लगी इसका हिसाब किताब मिलना मुश्किल काम हो गया है। सूत्रों का कहना है कि यहां ऑडिट नाम की कोई चीज ही नहीं है और जो इन्टरनल ऑडिट होते है उनमें लीपापोती कर ली जाती है।

कुछ इसी तरह का हाल टूल एण्ड गेज विभाग का भी बताया जा रहा है। हद तो यह हो गई कि महंगी हाईकार्बन हाईक्रोमियम स्टील के पुराने प्रेस टूल्स को बाहर सुधारने के लिए भेजा रहा है। एक टूल्स की कीमत 15 लाख रूपये बताई जा रही है। इनको अपनी चहेती इंडस्ट्रीज को काम दिया जा रहा है।सूत्र बताते है कि गोविन्दपुरा की जिन इंडस्ट्रीज को काम दिया जाता है उन्हें शीट के बंडल एवं टूल्स विभाग ही रिटर्नेबल बेसिस पर दिया जाता है। कुछ समय बाद यह टूल्स खराब हो जाते है इन्हें फिर उन्हीं पार्टी को टूल्स सुधारने का ऑर्डर भी दिया जाता है। जबकि रिपेयर का यह काम कारखाने में ही किया जा सकता है। यह गंभीर जांच का विषय है। भेल प्रवक्ता का कहना है कि इस मामले की कोई जानकारी नहीं है।

ईडी की आंखों में झोंक रहे धूल
भेल के मुखिया टारगेट पूरा करने में कुछ इस तरह व्यस्त है कि वह फीडर्स ग्रुप की और ध्यान देने की जरूरत ही नहीं समझ रहे हैं यही कारण है कि ग्रुप के मुखिया मनमानी कर उनकी आंखों में धूल झोंक रहे है। सूत्रों का कहना है कि पंचिंग टूल्स की हार्डनेस जहां 60-62 आरसी होती है वह 55-56 आ रही है। मटेरियल पहले के-100 आता था अब के-10 आ रहा है। ऐसे में हार्डनेस कहां से आयेगी। टूल्स पंचिंग मटेरियल पर सवालियां निशान लग गया है। परचेस ऑर्डर नम्बर 3360116 से टूल्स खरीदे गये। इसकी जांच होना जरूरी है। यह विभाग में भी बन सकते थे। यह टूल्स रिजेक्ट भी हो गये है, इसी तरह गियर खरीदी में भी धांधली का आरोप है। 35 गियर का ऑर्डर दिया, क्वालिटी विभाग में जांच के बाद 21 नग फेल हो गये। मजेदार बात यह है कि विभाग के मुखिया के मौखिक निर्देश के बाद इस आयटम की कई बार जांच कराई गई तब कहीं जाकर 14 गियर पास हुए। जबकि नियम यह कहता है यह पूरा लॉट निरस्त होना चाहिये था। ऐसे एक नहीं कई मामले हैं जो फीडर्स ग्रुप की मनमानी को दर्शातें है। भेल के मुखिया को ग्रुप के मुखिया गुमराह कर अनाप-शनाप खरीदी व मनमाना काम करने पर आमादा है।

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