नई दिल्ली
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की भर्ती के लिए 2010 में परीक्षा पास करने वाले कुछ कॉन्स्टेबल्स को केंद्र सरकार की ओर से ओबीसी कोटे में नौकरी देने से इनकार कर दिया गया था। केंद्र ने उत्तराखंड की एक जातियों पर लिखी गई एक किताब के आधार पर इन्हें नौकरी देने से इनकार कर दिया था क्योंकि इस पुस्तक में इनकी जाति ओबीसी सूची में शामिल नहीं थी। लेकिन, अब 7 साल तक की कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट से इन अभ्यर्थियों को जीत मिली है।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्र सरकार को इन लोगों को ओबीसी कोटे के तहत सीआरपीएफ में भर्ती करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने एक निजी प्रकाशक की पुस्तक के आधार पर आरक्षण से इनकार करने को लेकर केंद्र सरकार को फटकार भी लगाई। केंद्र सरकार ने सीआरपीएफ में 78 भर्तियों के लिए अधिसूचना जारी की थी। इनमें 9 सीटें ओबीसी के लिए थीं और 13 ओबीसी कोटे के तहत बैकलॉग की भर्तियां की जानी थीं।
इस अधिसूचना पर ओबीसी कोटे के तहत सैनी, मोमिन (अंसार), गुज्जर और कहार समुदाय से जुड़े उम्मीदवारों ने नौकरी के लिए आवेदन किया था। इन उम्मीदवारों ने परीक्षा पास की, लेकिन जब नतीजा घोषित किया गया तो सरकार ने इन्हें जनरल कैटिगरी के उम्मीदवारों में शामिल कर दिया। सरकार ने उत्तराखंड की एक किताब ‘आरक्षण एवं छूट पर स्वामी का संकलन’ के आधार पर कहा कि इनकी जातियां ओबीसी सूची में शामिल ही नहीं हैं।
ओबीसी सूची को लेकर यह भ्रम इसलिए पैदा हुआ क्योंकि भर्ती की प्रक्रिया उसी साल शुरू हुई, जिस साल उत्तराखंड को उत्तर प्रदेश से अलग किया गया था। लेकिन, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से पहाड़ी राज्य के लिए अलग से ओबीसी जातियों की केंद्रीय सूची नहीं तैयार की गई। आयोग का कहना था कि यूपी की सूची को ही उत्तराखंड में भी लागू किया जाएगा, लेकिन केंद्र सरकार ने यूपी की सूची की बजाय उत्तरांखड की एक पुस्तक पर भरोसा जताया।