नई दिल्ली
9 लाख से ज्यादा की तादाद में वरिष्ठ नागरिकों ने रेलवे की ‘गिव अप’ स्कीम के तहत स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़ दी जिससे रेलवे को 40 करोड़ रुपये की बचत हुई। पिछले साल शुरू की गई इस स्कीम के तहत सीनियर सिटिंजन्स को रेल टिकट पर पूरी छूट लेने या टिकट का पूरा पैसा देने का विकल्प मुहैया कराया जा रहा है। इसी क्रम में इस साल सब्सिडी की आधी रकम स्वेच्छा से छोड़ने का एक और विकल्प जोड़ दिया गया है।
रेलवे सीनियर सिटिजन कैटिगरी के टिकटों पर सब्सिडी के रूप में करीब 1,300 करोड़ रुपये का वहन करता है। इस स्कीम का लक्ष्य इस रकम में कटौती करना है। 22 जुलाई से 22 अक्टूबर 2017 के बीच 2.16 लाख बुजुर्ग पुरुषों और 2.67 बुजुर्ग महिलाओं ने अपनी पूरी सब्सीडी छोड़ दी जबकि 2.51 लाख बुजुर्ग पुरुषों और 2.05 लाख बुजुर्ग महिलाओं ने आधी सब्सिडी छोड़ी। इस तरह इन तीन महीनों में सब्सिडी छोड़नेवाले 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के यात्रियों की कुल संख्या 9.39 लाख रही।
पिछले साल इसी अवधि में सिर्फ 4.68 लाख वरिष्ठ नागरिकों ने ही सब्सिडी छोड़ी थी जिनमें 2.35 लाख पुरुष जबकि 2.33 लाख महिलाएं शामिल थीं। रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘आंकड़ों से पता चलता है कि एक साल में सब्सिडी छोड़नेवालों की तादाद दोगुनी हो गई। यह रेलवे के लिए बड़ी खबर है क्योंकि हम सब्सिडी के जरिए हो रहे घाटे को पाटने की कोशिश में हैं।’
रेलवे अभी रेल किराए का 43 प्रतिशत खुद वहन करता है जिससे उसे यात्री किराए में सब्सिडी के रूप में एक साल में 30,000 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। इसमें 1,600 करोड़ रुपये कॉन्सेसन पर टिकट पर देने में खर्च होता है। रेलवे सभी श्रेणियों के टिकट बेचकर अपनी कुल लागत का महज 57 प्रतिशत हिस्से की उगाही कर पा रहा है।