मुंबई
संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के वैट लगाने से मनी लॉन्ड्रिंग करने वालों के लिए 1 जनवरी 2018 से दुबई का आकर्षण कुछ कम हो जाएगा। वैट से मनी लॉन्ड्रिंग महंगी होगी और वैट रेग्युलेशंस से ऐसे सौदों के दस्तावेजी सबूत भी तैयार होंगे। दशकों तक यूएई में नई कंपनियों के साथ कागजों पर होने वाले सौदों को साफ बिजनस डील बताकर काले धन को सफेद किया जाता रहा है। इसके बाद वाइट मनी को दुबई के बैंकों में जमा या दूसरे देशों में निवेश किया जाता था। इस रकम को अक्सर भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (फॉरन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट यानी एफडीआई) के तौर पर वापस भी लाया जाता था।
स्विट्जरलैंड या दूसरे टैक्स हेवन को लेकर सख्ती बढ़ने के बाद दुबई में कंपनी खोलकर उनमें पैसा शिफ्ट किया जा रहा था। दुबई में खोली गई कंपनी इस पैसे को ट्रेडिंग इनकम या कमीशन या कंसल्टेंसी फीस के तौर पर दिखाती थी। अब ऐसे सौदों पर 5 प्रतिशत का वैट लगेगा। दुबई में ऐसी कंपनी यूएई में रहने वाले या मनी लॉन्ड्रिंग करने वाले भारतीय के एनआरआई रिश्तेदारों और सहयोगियों के नाम पर खोली जाती थी। इसके बाद भारतीय रेजिडेंट्स कंपनी में यूएई के शेयरहोल्डर्स का हिस्सा खरीदकर कंपनी पर कंट्रोल हासिल कर लेते थे।
सीए फर्म चोकसी ऐंड चोकसी के सीनियर पार्टनर मितिल चोकसी ने बताया, ‘जनवरी 2018 से यूएई में कुछ खलबली दिख सकती है। यूरोपियन यूनियन ने यूएई को ब्लैकलिस्ट कर रखा है। इसलिए वहां सभी गाइडलाइंस पूरी करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। यूएई में बिजनस की कीमत 5-10 प्रतिशत बढ़ जाएगी। इसका असर सभी तरह के सौदों पर पड़ेगा।’
वरिष्ठ सीए दिलीप लखानी ने बताया, ‘वैट की वजह से यूएई में कामकाजी लागत तो बढ़ेगी ही, दुबई की कंपनियों को रेग्युलर अकाउंट बुक भी मेंटेन करनी पड़ेगी। इससे दुबई की सरकारी एजेंसियां कंपनियों के कामकाज पर नजर रख पाएंगी और सभी सौदों की चेन का पता लग जाएगा। वैट से मनी लॉन्ड्रिंग रोकने में काफी मदद मिलेगी।’ हालांकि, लखानी ने यह भी कहा कि फर्जीवाड़ा करने वाले आगे चलकर कानून से बचने के दूसरे रास्ते खोज सकते हैं।
पैसे के लेन-देन पर परदा डालने के लिए मनी लॉन्ड्रिंग करने वाले दुबई में कई कंपनियां खोलते हैं। मिसाल के लिए कंपनी ए को शुरू में फंड मिलता है। वह इसे फर्जी ट्रांजैक्शन के नाम पर कंपनी बी को ट्रांसफर करती है। कंपनी बी इसी तरह की डील कंपनी सी से करती है। जब कंपनी सी की बुक में सौदे को दिखा दिया जाता है, तब कंपनी ए और बी को बंद कर दिया जाता है ताकि सौदे के तार किस तरह से जुड़े हैं, इसका पता न चल पाए। वैट रजिस्ट्रेशन और कंपनी ए और कंपनी बी के पेमेंट रिकॉर्ड की वजह से अब यह संभव नहीं होगा, भले ही दोनों कंपनियां बंद कर दी जाएं।