बांदा
खेतों में शौच करना है तो हर महीने 40 रुपये देने होंगे। वह भी अडवांस। उधारी नहीं चलेगी। यह पाबंदी अतर्रा शहर के नजदीक बसे भुजवन पुरवा गांव के दलित परिवारों पर करीब डेढ़ दशक से लागू है। शर्त यह भी है कि जो दलित परिवार जिसके खेतों में शौच के लिए जाता है, उस परिवार की महिलाओं को फसलों की बुआई-कटाई के समय उसी व्यक्ति के खेतों में मजदूरी करनी पड़ती है। वह भी 70 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से। महीने में अगर तीन बार दो से ज्यादा मेहमान आए तो 10 रुपये अतिरिक्त देने पड़ते हैं। शर्त न मानने वालों को खेतो में शौच नहीं करने दिया जाता। ऐसे में उन्हें शौच करने करीब तीन किमी दूर रोड पटरी या दूर जंगल में जाना पड़ता है।
भुजवन पुरवा में ठाकुर-वैश्य और दलितों के करीब 120 परिवार रहते हैं। इनमें से 60 परिवार दलितों के हैं जिनमें से 40 परिवारों के पास आवास नहीं है। यह सब घास-फूस की झोंपड़ी में रहते हैं। पिछले साल इन्हें ग्राम पंचायत ने एक-एक बिस्वा जमीन का आवासीय पट्टा दिया था। इन लोगों का कहना है कि पट्टे की जमीन लेखपाल ने नहीं बताई। गांव के दलित भइयालाल, रामसजीवन, मुन्नीलाल, बच्ची, संतोष, लोटन, हीरालाल, रामकुमार आदि का कहना है कि आवासीय पट्टा नापने के लिए हल्का लेखपाल दो-दो हजार रुपये मांग रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रधान से भी कहा गया लेकिन उन्होंने भी ध्यान नहीं दिया। इनके अलावा बाकी दलित परिवारों के भी मकानों में शौचालय नहीं है। सब खुले में शौच जाते हैं। इसके एवज में उन्हें खेत मालिकों को हर महीने किराया देना पड़ता है।
कमाई का भी ठिकाना नहीं
भुजवन पुरवा के रामसजीवन व अन्य का कहना है कि पिछले कई साल से मनरेगा के काम बंद हैं। ऐसे में कमाई का कोई ठिकाना न होने के कारण उन्हें मजबूरी में खेत मालिकों की शर्तें माननी पड़ रही हैं। इस क्षेत्र में काम कर रही विद्याधाम समिति के मंत्री राजाभइया का कहना है कि इनमें से किसी भी दलित परिवार के पास राशन कार्ड नहीं है। मनरेगा के जॉबकार्ड घरों में पड़े धूल फांक रहे हैं। पांच साल से मनरेगा से किसी को धेले का काम नहीं मिला है। वहीं एसडीएम अतर्रा अवधेश श्रीवास्तव ने कहा कि यह मामला अब तक जानकारी में नहीं आया। मैं खुद गांव जाऊंगा। जो भी समस्याएं होंगी, दूरी की जाएंगी